Rajasthan By-Election : Border सीट है, इसलिए Momentum तोड़ना रणनीति !
Friday, Oct 11, 2024-03:22 PM (IST)
जयपुर, 11 अक्टूबर 2024 । राजस्थान की राजनीति में हलचल मचाने वाला उपचुनाव एक बार फिर से सुर्खियों में है। राज्य की सात प्रमुख विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं, जिसमें चौरासी सीट का मुकाबला खास ध्यान खींच रहा है। आइए, एक नए दृष्टिकोण से इस राजनीतिक सियासत के महत्त्व को समझते हैं।
चौरासी सीट: भाजपा और संघ के लिए साख का सवाल
राजस्थान में होने वाले सात उपचुनावों में चौरासी सीट भाजपा और संघ के लिए एक विशेष महत्त्व रखती है। यह सीट अब सिर्फ चुनावी मैदान नहीं, बल्कि भाजपा और संघ के आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की साख का सवाल बन चुकी है। यहां आदिवासी राजनीति और स्थानीय समीकरणों की अहमियत इतनी है कि बीते दो चुनावों में भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने बड़े अंतर से जीत हासिल की है।
भाजपा की तैयारी और रणनीति
हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा ने राजस्थान के उपचुनाव पर ध्यान केंद्रित किया है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने डूंगरपुर के दौरे के दौरान चौरासी और सलूंबर सीटों के लिए कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। खास बात यह है कि चौरासी सीट से ही भाजपा ने अपना चुनावी अभियान शुरू किया, जो यह दर्शाता है कि यह सीट भाजपा और संघ के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।
चौरासी: तीन राज्यों की सीमा पर स्थित रणनीतिक सीट
चौरासी सीट राजस्थान, मध्य प्रदेश, और गुजरात की सीमाओं पर स्थित है, जिससे इसका असर इन तीनों राज्यों पर पड़ता है। संघ द्वारा वनवासी कल्याण परिषद के अंतर्गत इस क्षेत्र में कई सालों से कार्य किया जा रहा है। भाजपा यहां जीत दर्ज कर न केवल अपनी पकड़ मजबूत करेगी, बल्कि आदिवासी रिलीजन कोड और नए ट्राइबल स्टेट की मांग के बढ़ते प्रभाव को भी कुछ हद तक कम करने की कोशिश करेगी।
मुस्लिम-आदिवासी गठजोड़ और बीएपी की चुनौती
बीएपी के उभरते हुए गठबंधन ने चौरासी सीट पर भाजपा और संघ की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। खासकर एमपी के नीमच-मंदसौर से आए मुस्लिम परिवारों की बढ़ती उपस्थिति ने यहां एक नया समीकरण खड़ा कर दिया है। बीएपी इस गठजोड़ के साथ थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिशों में जुटी है, जो भाजपा के लिए एक कड़ी चुनौती साबित हो रही है।
बीएपी का बढ़ता राजनीतिक प्रभाव
बीएपी ने 2018 में 2 विधानसभा सीटों से शुरुआत कर 2024 तक संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर जैसे क्षेत्रों में बीएपी ने भाजपा को भारी अंतर से हराया, जहां पीएम मोदी की जनसभा भी कोई खास असर नहीं डाल पाई। बीएपी का यह बढ़ता प्रभाव भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
भाजपा और रोत के बीच राजनीतिक समीकरण
चौरासी सीट बीएपी सांसद राजकुमार रोत के इस्तीफे के बाद खाली हुई। भाजपा ने कई बार रोत के साथ नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन रोत ने भाजपा का प्रस्ताव ठुकरा दिया। अब भाजपा के पास इस क्षेत्र में कोई मजबूत नेतृत्व नहीं है, जो इस बढ़ते आदिवासी नरेटिव का सामना कर सके।
कन्वर्जन चिंता का विषय
मध्य राजस्थान में हो रहे धर्म परिवर्तन संघ के लिए बड़ा मुद्दा बन चुका है। खासकर ब्यावर और मेवाड़ क्षेत्र में एंटी-हिंदू गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव ने संघ का ध्यान खींचा है। संघ के हाल ही के दौरे में सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने भी इस विषय पर गहरी चिंता जताई थी।
अंतिम विचार: उपचुनावों का असर
राजस्थान के ये उपचुनाव न सिर्फ राज्य की राजनीति को, बल्कि देश की आदिवासी राजनीति को भी नई दिशा देने वाले हैं। भाजपा और संघ के लिए चौरासी सीट की जीत उनके ट्राइबल क्षेत्र के नरेटिव को मजबूत करेगी, जबकि बीएपी और मुस्लिम-आदिवासी गठजोड़ थर्ड फ्रंट की संभावनाओं को उजागर कर सकता है।
इस उपचुनाव के नतीजे राजस्थान की राजनीति में गहरे बदलाव का संकेत दे सकते हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन इस सियासी जंग में बाजी मारता है।