सरदार पटेल का ग्रामीण व जनजातीय सशक्तिकरण, इन योजनाओं में दिखता है विकास
Friday, Oct 31, 2025-04:36 PM (IST)
जयपुर। आपने सरदार वल्लभभाई पटेल को देश के लौह पुरुष के रूप में सुना होगा, जिन्होंने 562 रियासतों को जोड़कर भारत को एकता के सूत्र में पिरोया। लेकिन क्या आप जानते हैं? पटेल सिर्फ राष्ट्र-एकीकरण के ही नहीं, बल्कि ग्रामीण और जनजातीय सशक्तिकरण के भी अग्रदूत थे।
आजादी से पहले भारत की 82% आबादी गाँवों में रहती थी — गरीबी, शोषण और अशिक्षा से घिरी हुई। ऐसे समय में सरदार पटेल ने बारदोली सत्याग्रह जैसे आंदोलनों के ज़रिए किसानों और आदिवासियों को संगठित किया। भील समुदाय सहित हजारों ग्रामीणों को उन्होंने अहिंसक संघर्ष के लिए प्रेरित किया और यही आंदोलन उन्हें “सरदार” की उपाधि दिलाने का कारण बना।
आजादी के बाद पटेल ने न सिर्फ रियासतों का विलय किया, बल्कि आदिवासी क्षेत्रों को भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में सुरक्षित स्थान दिलाया। ठक्कर बापा के नेतृत्व में “आदिवासी समिति” का गठन कराया गया, जिसकी सिफारिशों पर संविधान की पाँचवीं अनुसूची बनी — जो आज भी जनजातीय अधिकारों की आधारशिला है।
पटेल का मानना था “गांव मजबूत होंगे तो भारत मजबूत होगा।” इसी सोच के तहत उन्होंने ग्राम पंचायतों और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा दिया, जो बाद में पेसा अधिनियम (1996) के रूप में साकार हुआ। उनकी नीतियों की झलक आज की कई योजनाओं में दिखती है जैसे वन अधिकार अधिनियम 2006, एकलव्य मॉडल स्कूल और वन धन योजना, ये सब पटेल के उसी विजन को आगे बढ़ाते हैं जिसमें ग्रामीण और आदिवासी भारत को आत्मनिर्भर बनाना था।
सरदार पटेल हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा राष्ट्र निर्माण सिर्फ सीमाओं के एकीकरण से नहीं,
बल्कि उन गाँवों और जनजातीय समाजों के सशक्तिकरण से होता है जो भारत की असली आत्मा हैं। सरदार पटेल सिर्फ भारत के लौह पुरुष नहीं थे, वे ग्रामीण और जनजातीय विकास के सच्चे शिल्पकार भी थे। सरदार पटेल ने बारदोली सत्याग्रह से लेकर संविधान निर्माण तक आदिवासियों और ग्रामीणों के अधिकारों की नींव रखी और आज की योजनाएँ उनके विजन को आगे बढ़ा रही हैं।
