धनखड़ के इस्तीफे के बाद जाट राजनीति पर फोकस, बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती

Tuesday, Jul 22, 2025-04:22 PM (IST)

जयपुर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजस्थान की राजनीति में जाट समुदाय को लेकर नई बहस शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इसे लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि भाजपा ने किसान कौम यानी जाटों की लगातार अनदेखी की है। उन्होंने आरोप लगाया कि अब उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद बीजेपी में जाट नेतृत्व पूरी तरह गायब हो गया है।

कांग्रेस का तीखा हमला, बीजेपी पर भेदभाव के आरोप
कांग्रेस पहले से ही यह आरोप लगाती रही है कि बीजेपी जाटों को हाशिए पर रखने की रणनीति पर काम कर रही है। अब जब उपराष्ट्रपति पद पर जाट प्रतिनिधित्व भी खत्म हो गया है, तो यह आरोप और तीखा हो गया है। वहीं कांग्रेस खुद को जाट समाज के ज्यादा करीब दिखाने की कोशिश में जुटी है, जहां संगठन की कमान खुद एक जाट नेता डोटासरा के पास है।

भजनलाल सरकार में सीमित प्रतिनिधित्व
राज्य सरकार की कैबिनेट में जाट समुदाय की हिस्सेदारी करीब 16% है। इनमें दो कैबिनेट मंत्री — कन्हैयालाल चौधरी (PHED) और सुमित गोदारा (खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति) हैं, जबकि दो राज्यमंत्री — झाबर सिंह खर्रा (स्वतंत्र प्रभार) और विजय सिंह शामिल हैं। हालांकि इन नेताओं का प्रदेशव्यापी असर सीमित माना जा रहा है।

संगठन में भी कमजोर मौजूदगी
बीजेपी के प्रदेश संगठन में जाट नेताओं का प्रतिनिधित्व लगभग 13% है। प्रमुख पदों की बात करें तो दो उपाध्यक्ष — सीआर चौधरी और ज्योति मिर्धा, एक प्रदेश महामंत्री — संतोष अहलावत और एक मंत्री — विजेंद्र पूनिया हैं। सीआर चौधरी को हाल ही में किसान आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया था।

केंद्रीय संगठन में खालीपन
बीजेपी के केंद्रीय संगठन में राजस्थान से फिलहाल कोई भी जाट नेता प्रमुख पद पर नहीं है। हालांकि, पार्टी में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति लंबित है। उम्मीद है कि नई कार्यकारिणी में राजस्थान के जाट नेताओं को अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। खासतौर पर सतीश पूनिया को राष्ट्रीय महामंत्री बनाए जाने की चर्चाएं तेज हैं।

संभावित बदलाव: कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियाँ
पार्टी सूत्रों के अनुसार, आगामी कैबिनेट विस्तार में जाट समुदाय से दो और मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है। साथ ही, मौजूदा मंत्रियों को ज्यादा प्रभावशाली मंत्रालय सौंपे जाने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं। वहीं अभी तक केवल 8 बोर्ड और आयोगों में ही राजनीतिक नियुक्तियां हुई हैं, जिनमें जाट नेताओं को और मौका दिया जा सकता है।

लोकसभा चुनाव में दिखा नाराजगी का असर
विधानसभा चुनाव में जाट समुदाय ने बीजेपी को भरपूर समर्थन दिया था, लेकिन हालिया लोकसभा चुनाव में यह समीकरण बिगड़ता दिखा। पार्टी जाट बहुल सीटें — सीकर, झुंझुनूं, चूरू, श्रीगंगानगर और बाड़मेर हार गई। खासतौर पर बाड़मेर में जाट और राजपूत वोटों का ध्रुवीकरण साफ नजर आया। झुंझुनूं उपचुनाव में बीजेपी को सफलता जरूर मिली, लेकिन लोकसभा के संकेत पार्टी के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं।


Content Editor

Kuldeep Kundara

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News