जब जिया उल हक से नटवर सिंह ने कह दिया था, मेरे दोस्तों को डिनर पर ना बुलाएं
Monday, Aug 12, 2024-04:09 PM (IST)
जयपुर, 12 अगस्त 2024 (विशाल सूर्यकांत) : भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का लंबी बीमारी के बाद 10 और 11 जून की दरम्यानी रात दिल्ली में निधन हो गया । नौकरशाह से सियासत में किस्मत आजमाने आए नटवर सिंह को देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया । नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे नटवर सिंह अपनी साफगोई और हाजिर जवाबी से अपनी खास पहचान बनाई थी । वहीं नटवर सिंह ने अपने नौकरशाह के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान में भी राजदूत के रूप में सेवाएं दी थी । आज हम आपको इस रिपोर्ट में उनके पाकिस्तान के कार्यकाल से जुड़े रोचक प्रसंग की जानकारी दे रहे हैं
दरअसल, ये कहानी उस वक्त की है, जब पाकिस्तान में फ़ौजी तानाशाह राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक़ का सिक्का चलता था, वो खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी बन गए थे । उस दौर में पाकिस्तान में भारत के राजदूत थे कुंवर नटवर सिंह । सोचिए ज़रा, एक राष्ट्रपति और एक देश के राजदूत के बीच संवाद किस तरह का होना चाहिए, लेकिन कुंवर नटवर सिंह के हुनर के राष्ट्रपति जिया उल हक़ इस कदर कायल थे । कि वो उस दौर में बाकी मुल्कों के राजदूतों से ज्यादा कुंवर नटवर सिंह से बात करते थे । हालांकि इसके पीछे दिल्ली की सत्ता पर इंदिरा गांधी थी और जनरल जिया उल हक हर हाल में चाहते थे, कि इंदिरा गांधी से उनका अच्छा संवाद बना रहे । ये वो दौर था, जब पूरे पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक से कोई आंख नहीं मिला सकता था, लेकिन कुंवर नटवर सिंह उनसे बेतकल्लुफ अंदाज़ में बात करते थे । इसकी वजह भी कुछ ख़ास थी । जनरल जिया उल हक़ और कुंवर नटवर सिंह दोनों मुंबई में सेंट स्टीफन कॉलेज से ही पढ़े थे । इस कॉमन फेक्टर ने दोनों को अपने-अपने ओहदों को एक तरफ कर, सहज कूटनीतिक संवाद के लिए जगह दे दी । अपनी किताब ‘वन लाइफ इज़ नॉट इनफ’ में नटवर सिंह लिखते हैं, कि एक बार जनरल जिया उल हक़ ने उन्हें फोन किया और अपने दोस्तों के साथ डिनर पर आमंत्रित किया । इस दौरान जनरल जिया उल हक़ बोले, आपके दोस्तों की लिस्ट हमें भेज दें ताकि हम उन्हें भी औपचारिक रूप से आमंत्रित कर सकें । उस वक्त भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में ज्यादा तल्खी थी, क्योंकि 1975 में बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान ने मुंह की खाई थी और इसके बाद दोनों देशों में कूटनीति और तल्खी साथ चल रही थी । कुंवर नटवर सिंह ने इस आमंत्रण के पीछे की साजिश को समझ लिया और तपाक से बोले, "पाकिस्तान में मेरे जो दोस्त हैं उनकी सारी लिस्ट आपकी इंटेलिजेंस एजेंसियों के पास उपलब्ध है, जिन दोस्तों के नाम इस लिस्ट में नहीं है, मैं नहीं चाहता कि आप उन्हें डिनर पर बुलाएं"
उस दौर में जनरल जिया उल हक़, अपने प्रचार तंत्र के जरिए पाकिस्तान की जनता के बीच ये खूब मैसेज देते थे, कि भारत को कैसे मात दे रहे हैं ?, भारत अंदरूनी रूप से कितना परेशान है । एक और किस्सा अपनी किताब में नटवर सिंह ने लिखा कि – एक बार जनरल जिया उल हक ने सिनेमा घरों में स्क्रीन पर ये चलवा दिया कि पाकिस्तान में भारतीय दूतावास के कई अधिकारी, कर्मचारी और उनके परिवार के लोग एक हादसे में मारे गए हैं । संयोग से उस वक्त उस सिनेमाघर में भारतीय उच्चायोग के कुछ लोग भी परिवार के साथ मौजूद थे । वो तुरंत अपने घरों की और दौड़े और बाद में पता चला कि ये सूचना ग़लत थी । जानबूझ कर पाकिस्तान आवाम को बरगलाने के लिए जनरल जिया उल हक ने ये खबर फैलाई थी । जनरल जिया उल हक और इंदिरा गांधी के बीच तल्ख रिश्ते और इन रिश्तों के बीच एक संवाद सेतु के रूप में नटवर सिंह ने अपनी भूमिका निभाई । वैसे तो जनरल जिया उल हक और नटवर सिंह अक्सर पुरानी बातों में सहज हो जाया करते थे, लेकिन कश्मीर पर बात करते हुए जनरल जिया उल हक़ बहुत आक्रामक हो जाया करते थे । नटवर सिंह अपनी किताब में लिखते हैं, कि एक दिन ऐसी ही चर्चा के दौरान जनरल जिया उल हक बोले – ‘कश्मीर मेरे ख़ून में है’ इस पर नटवर सिंह ने हाजिर जवाबी से कहा, कि मिस्टर प्रेसिडेंट, कश्मीर हमारे बोन मेरो में है । इस जवाब को सुनकर जनरल जिया उल हक़ बिलबिला उठे और तुरंत बात को पलट दिया ।
अपने लंबे दौर की राजनीति में कुंवर नटवर सिंह नेहरू से लेकर पीएम मोदी के कार्यकाल तक किसी न किसी रूप में विदेश से जुड़े मामलों में प्रासंगिक बने रहे । कुंवर नटवर सिंह के किस्से कई हैं, जो अब अतीत का हिस्सा बन कर रह गए हैं । खुद कुंवर नटवर सिंह इस दुनिया को अलविदा कह गए और पीछे छोड़ गए हैं भारतीय कूटनीति की वो अनमोल विरासत, जो आने वाली पीढ़ियों को अतीत की कहानियों के जरिए भविष्य की राह बताती रहेगी...सदियों तलक...।