दौसा जेल में राष्ट्रीय एकता दिवस की अनूठी तैयारी, लौहपुरुष की सैंड आर्ट प्रतिमा बनी आकर्षण का केंद्र

Monday, Oct 27, 2025-06:14 PM (IST)

जयपुर, 27 अक्टूबर। 
राष्ट्रीय एकता दिवस (31 अक्टूबर) के अवसर पर विशिष्ट केंद्रीय कारागृह, श्यालावास (दौसा) में एक अनूठी पहल देखने को मिली है। यहां बंदियों ने अपने हुनर और रचनात्मकता से देश के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की मिट्टी से बनी एक सजीव सैंड आर्ट प्रतिमा तैयार की है, जो न केवल कला का उत्कृष्ट उदाहरण है बल्कि सुधार और आत्मचिंतन की दिशा में उठाया गया प्रेरक कदम भी है।

यह प्रतिमा पूरी तरह से जेल परिसर की प्राकृतिक मिट्टी और रंगों से बनाई गई है। बंदी कलाकारों ने इसमें अपने भीतर छिपे भावों को इस तरह उकेरा है कि सरदार पटेल का दृढ़ व्यक्तित्व और राष्ट्रीय एकता का संदेश प्रतिमा के हर आयाम में झलकता है।

जेल अधीक्षक पारस जांगिड़ ने बताया कि यह पहल बंदियों के अंदर सकारात्मक सोच, रचनात्मकता और देशभक्ति की भावना जगाने का प्रयास है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि बंदी कला, संस्कृति और सकारात्मक गतिविधियों के माध्यम से खुद को एक बेहतर इंसान के रूप में गढ़ें। यह सैंड आर्ट इसी दिशा में एक जीवंत उदाहरण है।”

इस अनूठी कलाकृति को जेल के बंदी राजेश मूर्तिकार ने अपनी कलात्मक प्रतिभा और अथक परिश्रम से तैयार किया है। उनके सहयोगी संदीप गुप्ता ने इस प्रतिमा के रंग संयोजन और स्वरूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों बंदियों ने मिलकर कुछ ही दिनों में मिट्टी की इस विशाल मूर्ति को मूर्त रूप दिया, जो अब जेल परिसर में आने वाले सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है।

जेलर विकास बागोरिया ने बताया कि राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर जेल में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें राष्ट्रीय एकता की शपथ, देशभक्ति आधारित नुक्कड़ नाटक, सरदार पटेल पर प्रश्नोत्तरी और भाषण प्रतियोगिता, तथा विशेष एकता परेड शामिल हैं। इन सभी कार्यक्रमों का उद्देश्य बंदियों को देश की एकता, अखंडता और भाईचारे के महत्व से जोड़ना है।

बागोरिया ने कहा, “सरदार पटेल ने जिस तरह देश की रियासतों को एक सूत्र में पिरोया, उसी भावना को हम बंदियों में जाग्रत करना चाहते हैं—कि एकता से ही शक्ति और सुधार संभव है।”

राष्ट्रीय एकता दिवस के इस अवसर पर कारागृह परिसर एक अलग ही जोश और देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ है। मिट्टी से गढ़ी गई सरदार पटेल की यह प्रतिमा न केवल कला की उत्कृष्ट मिसाल है, बल्कि इस बात का प्रतीक भी कि परिवर्तन और एकता की भावना कहीं भी जन्म ले सकती है — चाहे वह जेल की दीवारों के भीतर ही क्यों न हो।
 


Content Editor

Afjal Khan

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