झारखंड के पूर्व CM ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का निधन, राजनीतिक जगत में शोक की लहर
Monday, Aug 04, 2025-03:14 PM (IST)

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और जनजातीय समुदाय के प्रखर नेता शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
लंबी बीमारी के बाद निधन
शिबू सोरेन पिछले डेढ़ महीने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। 24 जून 2025 को किडनी संबंधी परेशानियों के चलते उन्हें सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी आया था, जिसके बाद उनकी हालत नाजुक बनी रही और वे वेंटिलेटर पर थे। अस्पताल के अनुसार, 4 अगस्त को सुबह 8:56 बजे उनका निधन हुआ।
‘दिशोम गुरु’ की राजनीतिक विरासत
‘दिशोम गुरु’ के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में एक कद्दावर व्यक्तित्व थे। बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व में आदिवासी समुदाय और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं। उनकी सादगी और जमीनी राजनीति की शैली ने उन्हें जनता के बीच खास लोकप्रियता दिलाई।
देशभर से शोक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "वे एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों के सशक्तीकरण के लिए अटूट समर्पण दिखाया। उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।"
राजस्थान के CM भजनलाल शर्मा ने कहा, "उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा और उनके सशक्तीकरण के लिए आजीवन संघर्ष किया।"
पूर्व CM अशोक गहलोत ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "सोरेन जी ने अपना पूरा जीवन आदिवासी समाज के कल्याण और उनके हितों के लिए समर्पित कर दिया।"
झारखंड के CM हेमंत सोरेन, जो उनके बेटे हैं, ने सोशल मीडिया पर लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।"
झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति
शिबू सोरेन का जाना झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने न केवल राजनीतिक मंचों पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी आदिवासियों और वंचितों की आवाज बुलंद की। उनके निधन के बाद देशभर से संवेदनाएं लगातार आ रही हैं।