नाहरगढ़ की पहाड़ियों में सात दिन पहले हुई रहस्यमयी घटना को अब सुलझाएगी ये तकनीक, जानने के लिए पढ़िये ये पूरी खबर
Monday, Sep 09, 2024-04:39 PM (IST)
जयपुर, 9 सिंतबर 2024 । गुलाबी नगरी की नाहरगढ़ की पहाड़ियों में सात दिन पहले हुई रहस्यमयी घटना का अभी तक कोई खुलासा नहीं हो पाया है । अभी तक पुलिस से ये गुत्थी सुलझ नहीं पाई है । ऐसे में अभी तक पुलिस को इस मामले में असफलता ही हाथ लगी है, लेकिन धीरे-धीरे घटना को लेकर कई बातें निकलकर सामने आ रही है । आशीष की लाश जिन हालातों में मिली है,उससे तय है कि कुछ न कुछ तो अनहोनी हुई है उस दिन, बहरहाल, पुलिस ने इस मामले में अब तक मौजूद सारे संसाधन इस्तेमाल कर लिए है। एक तरह से ये सबसे महंगा सर्च ऑपरेशन बन रहा है। मगर नतीज़ा अभी भी सिफर है, जिस तकनीक की बात राहुल को खोजने में हो रहीं है, क्या है वो तकनीक और कैसे हो सकती है इसके सहारे राहुल की खोज । आज इसी तकनीक के बारे में हम आपको बताएंगे इस खबर में ।
तो चलिए बात करते हैं उस तकनीक की...तो उस तकनीक का नाम है थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग, यह एक उन्नत तकनीक है जिसका उपयोग त्रि-आयामी मॉडल बनाने के लिए किया जाता है, जिसमें लेजर पल्स का उपयोग करके वस्तुओं की दूरी और स्थिति का पता लगाया जाता है। यह तकनीक विशेष रूप से पहाड़ी इलाक़ों में खोज और मैपिंग कार्यों में उपयोगी है । जहां अन्य तकनीकें जैसे कि फोटोग्राममेट्री या रेडियो फ्रीक्वेंसी मॉडलिंग प्रभावी नहीं हो सकती हैं।
आपको बताते चले कि पहाड़ी इलाक़ों में खोज के लिए थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग इन तरीकों से किया जा सकता है । तो पहला है थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग से पहाड़ी इलाक़ों का विस्तृत त्रि-आयामी मॉडल बनाया जा सकता है, जिसमें ढलान, घाटियां, और अन्य भौगोलिक विशेषताएं शामिल होती हैं। वहीं दूसरा लेजर पल्स का उपयोग करके वस्तुओं की दूरी और स्थिति का पता लगाया जा सकता है, जिससे खोज कार्यों में मदद मिलती है। तीसरे तरीके की बात करें तो थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग से अस्पष्ट क्षेत्रों जैसे कि घने जंगल या धुंधले क्षेत्रों में भी खोज की जा सकती है। इसी के साथ चौथा तरीका आपदा प्रबंधन किया जाता है, जैसे कि भूस्खलन या बाढ़ के बाद क्षतिग्रस्त क्षेत्रों का मूल्यांकन करने में।
वहीं थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग में उपकरण और तकनीक की बात करें तो ली-डार सेंसर, यह मुख्य उपकरण है, जो लेजर पल्स का उपयोग करके वस्तुओं की दूरी और स्थिति का पता लगाता है। वहीं दूसरे उपकरण के अंतर्गत जीपीएस और आईएमयू आता है, जिसमें जीपीएस (ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम) और आईएमयू (इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट) का उपयोग करके ली-डार सेंसर की स्थिति और गति का पता लगाया जाता है। और तीसरा है कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर, जिसमें डेटा को प्रोसेस करने और त्रि-आयामी मॉडल बनाने के लिए विशेष सॉफ़्टवेयर का उपयोग किया जाता है।
अब बात कर लेते हैं कि इस तकनीक की रिपोर्ट किस तरह से तैयार होती है ? सबसे पहले ली-डार सेंसर और जीपीएस/आईएमयू का उपयोग करके डेटा संग्रह किया जाता है। इसके बाद डेटा प्रोसेसिंग के अंतर्गत संग्रहित डेटा को कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके प्रोसेस किया जाता है, जिसमें त्रुटियों को हटाया जाता है और डेटा को फ़िल्टर किया जाता है। इसी के साथ प्रोसेस्ड डेटा का उपयोग करके त्रि-आयामी मॉडल बनाया जाता है। इसके बाद
त्रि-आयामी मॉडल का विश्लेषण किया जाता है और रिपोर्ट तैयार की जाती है, जिसमें आवश्यक जानकारी और निष्कर्ष शामिल होते हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट में त्रि-आयामी मॉडल की छवियां, ऊंचाई और दूरी के आंकड़े, भौगोलिक विशेषताओं का विवरण और खोज कार्यों के परिणाम जैसी जानकारी शामिल हो सकती है ।
आपको बता दें कि थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग गुमशुदा व्यक्ति की तलाश में किया जा सकता है। यह तकनीक नीचे दिए गए सिद्धांतों पर काम करती है । लिहाजा, उन सिद्धातों के बारे में हम आपको बता रहे हैं । कि पहला सिद्धांत विस्तृत मॉडलिंग, जिसमें थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग से पहाड़ी इलाक़ों का विस्तृत त्रि-आयामी मॉडल बनाया जा सकता है, जिसमें ढलान, घाटियां, और अन्य भौगोलिक विशेषताएं शामिल होती हैं। दूसरा सिद्धांत वस्तु का पता लगाना, जिसमें लेजर पल्स का उपयोग करके वस्तुओं की दूरी और स्थिति का पता लगाया जा सकता है, जिससे गुमशुदा व्यक्ति का पता लगाने में मदद मिलती है। वहीं तीसरा सिद्धांत अस्पष्ट क्षेत्रों का पता लगाना, जिसमें थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग से अस्पष्ट क्षेत्रों जैसे कि घने जंगल या धुंधले क्षेत्रों में भी खोज की जा सकती है।
यह तकनीक विशेष रूप से पहाड़ी इलाक़ों में गुमशुदा व्यक्ति की तलाश में उपयोगी है, जहां अन्य तकनीकें जैसे कि फोटोग्राममेट्री या रेडियो फ्रीक्वेंसी मॉडलिंग प्रभावी नहीं हो सकती हैं । आपको बता दें कि थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग गुमशुदा व्यक्ति की खोज में कई बार किया गया है। यहां कुछ उदाहरण हैं आपको बता रहे हैं । 2019 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक गुमशुदा तीर्थयात्री की खोज की गई, जिसमें थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग करके तीर्थयात्री के संभावित स्थान का पता लगाया गया और बाद में उसे सुरक्षित बरामद किया गया। वहीं साल 2018 में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक गुमशुदा पर्यटक की खोज की गई, जिसमें थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग करके पर्यटक के संभावित स्थान का पता लगाया गया और बाद में उसे सुरक्षित बरामद किया गया । 2017 में नेपाल में एक गुमशुदा ट्रेकर की खोज की गई, जिसमें इस तकनीक का उपयोग करके ट्रेकर के संभावित स्थान का पता लगाया गया और बाद में उसे सुरक्षित बरामद किया गया ।
दरअसल, सात दिन पहले नाहरगढ़ की पहाड़ियों में हुई अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए अब इस तकनीक थ्री डी स्लेम ली-डार मैपिंग का उपयोग किया जा रहा है । ये मामला अब न सिर्फ पुलिस और परिजनों के लिए बल्कि पूरे शहर के लोगों के लिए talk of the town बन गया है । इस घटना की अपडेट हम लगातार आपको बताते रहेंगे, मगर इस क्राइम सीन में आपको क्या लगता है, क्या हुआ होगा आशीष के साथ, कहां गया होगा राहुल ? कमेंट बॉक्स में लिखकर कर जरूर बताएं ।