ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड पर मेले का हुआ शुभारंभ, जानिए क्या कहता हैं इतिहास

Thursday, Sep 21, 2023-01:51 PM (IST)

धौलपुर। कोमी एकता की मिसाल माने जाने वाले ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड पर मेले का शुभारंभ हो गया हैं। तीर्थराज मचकुंड मेले में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु सरोवर में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। वहीं पहाड़ वाले अब्दाल शाह बाबा की दरगाह में माथा भी टेकते हैं।

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, मचकुंड महाराज को सभी तीर्थो का भांजा कहा जाता हैं। माना जाता हैं कि सरोवर में देवछठ वाले दिन स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता हैं। छठ तक चलने वाले इस मेले में राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु सरोवर में स्नान करने पहुंचते हैं। प्रति वर्ष ऋषि पंचमी से देवछठ तक लगने वाले तीर्थराज मचकुंड के लक्खी मेले को लेकर मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद जब राक्षस कालयवन के अत्याचार बढ़ने लगे, तब श्रीकृष्ण ने कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा था। युद्ध में श्रीकृष्ण को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। तब श्रीकृष्ण ने छल से मचकुंड महाराज के जरिए कालयवन का वध करवाया था। जिसके बाद कालयवन के अत्याचारों से पीड़ित ब्रजवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई। तब से लेकर आज तक मचकुंड महाराज की तपोभूमि में सभी लोग देवछठ के मौके पर स्नान करने आते है। 

मान्यता है कि यहां नवविवाहित जोड़ों के सहरे की कलंगी को सरोवर में विसर्जित कर उनके जीवन की मंगलकामना की जाती हैं। हजारों की संख्या में नवविवाहित जोड़े हर वर्ष यहां आते है। नवविवाहित जोड़ों के परिजन मचकुंड सरोवर में स्नान और पूजा के बाद मोहरी को मचकुंड में प्रवाहित करते हैं। एक मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धालु चार धाम की यात्रा करता है, उसकी यात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती, जब तक वह मचकुंड मेले में डुबकी नहीं लगाता। 
 वहीं इस मेले की एक मान्यता है कि सुबह श्रद्धालु तीर्थराज सरोवर में श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं फिर शाम को पहाड़ अब्दुल शाह की दरगाह पर माथा टेक कर रात्रि में होने वाले मुशायरे और कव्वाली का लुफ्त उठाते हैं। मेले में आने वाली भारी भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए हैं। 


Content Editor

Afjal Khan

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