सरकारी स्कूलों में हादसों का साया: झालावाड़ के बाद जैसलमेर में भी गई मासूम की जान, विपक्ष का सरकार पर निशाना
Tuesday, Jul 29, 2025-03:29 PM (IST)

जयपुर, 29 जुलाई 2025 । राजस्थान में सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत अब जानलेवा साबित हो रही है। हाल ही में झालावाड़ के पीपलोदी गांव में स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत के बाद सियासत गरमा गई थी, और अब जैसलमेर जिले के पूनमनगर गांव में एक और दर्दनाक हादसा सामने आया है। यहां सरकारी स्कूल के मुख्य गेट का जर्जर खंभा गिरने से एक छात्रा की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक शिक्षक गंभीर रूप से घायल हो गया।
इस हादसे ने प्रदेश की राजनीति में नया भूचाल ला दिया है। विपक्ष ने प्रदेश की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए तीखा हमला बोला है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने सोशल मीडिया के ज़रिए सरकार की घोर लापरवाही पर सवाल खड़े किए हैं।
गहलोत का निशाना: "यह सिस्टम की विफलता"
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए लिखा—"झालावाड़ दुखांतिका के बाद फिर एक मासूम की जान जाना सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। मुख्यमंत्री से आग्रह है कि त्वरित कदम उठाएं, ताकि किसी और मासूम की जान न जाए।"
डोटासरा ने उठाए सवाल: “क्या ये मौत टाली नहीं जा सकती थी?”
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि अगर सरकार ने समय रहते राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देशों की पालना की होती, तो यह हादसा रोका जा सकता था।
"8 जुलाई को आयोग ने इन स्कूल भवनों की मरम्मत के स्पष्ट निर्देश दिए थे, लेकिन न प्रशासन जागा, न शिक्षा विभाग। अगर अब भी जिम्मेदारी तय नहीं हुई, तो सरकार ही बच्चों की जान के लिए खतरा बन जाएगी।"
पायलट का बयान: “स्कूलों में सुरक्षा मानकों की घोर अनदेखी”
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने इस हादसे को विद्यालय परिसरों में भवन सुरक्षा की अनदेखी बताया। उन्होंने कहा कि "जहां भी स्कूल भवन जर्जर हों, वहां तत्काल मरम्मत और रखरखाव सुनिश्चित किया जाए। वरना ऐसे हादसे बार-बार होते रहेंगे।"
राजनीतिक बहस बनाम ज़मीनी समाधान
राज्य में शिक्षा व्यवस्था और स्कूल इमारतों की दुर्दशा को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन मौतों पर सियासत से इतर कोई ठोस ज़मीनी हल निकलेगा?
झालावाड़ और जैसलमेर की घटनाओं ने यह सवाल एक बार फिर खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक मासूम बच्चे सरकारी स्कूलों की लापरवाही की भेंट चढ़ते रहेंगे?