Rajasthan News : मोरेल बांध का रखरखाव दौसा के पास फिर भी दौसा की नहीं क्यों नहीं बुझ रही प्यास ?

Friday, Nov 22, 2024-04:48 PM (IST)

 

दौसा, 22 नवंबर 2024 । दौसा जिले का मोरेल बांध एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध है जो लालसोट के कांकरिया में स्थित है। इस बांध का निर्माण वर्ष 1952 में हुआ था । इस बांध की लंबाई 5364 मीटर है, अबकी बार हुई भारी बारिश से यह लबालब हो गया था और अब इस बांध का पानी नहरों में छोड़ा जा रहा है, यह पानी अब किसानों के काम आएगा ।

दौसा जिले में कई सालों में ऐसा नजारा देखने को मिला जब किसानों के घरों में इस बांध से खुशियों की लहरें दौड़ कर आएंगी। बता दें कि मोरेल नदी के पानी से 19 हजार हेक्टेयर भूमि में खेती होगी। बांध से पानी छोड़ने के मामले में सिंचाई विभाग के XEN मोहनलाल मीणा का कहना है कि जब तक किसानों को सिंचाई का पर्याप्त पानी नहीं पहुंच जाता तब तक बांध से पानी छोड़ा जाएगा, फिर चाहे बांध खाली क्यों न हो जाए । 

वहीं मोरेल बांध से दौसा जिले के मात्र 13 गांवों में पूर्वी नहर से 3200 हैक्टेयर भूमि की किसान सिंचाई कर सकेंगे । वहीं सवाई माधोपुर के 55 गांवों के किसान कुल 12 हजार 600 हैक्टेयर भूमि पानी से सिंचाई कर सकेंगे । गंगापुर जिले के 15 गांवों के किसानों के लिए 3600 हैक्टेयर भूमि को पानी मिलेगा । बता दें कि इस मोरेल बांध से दो नहरों में पानी छोड़ा गया है, मुख्य नहर से सवाई माधोपुर और पूर्वी नहर से दौसा जिला और गंगापुर जिले में पानी छोड़ा है । जिससे तीनों जिलों की कुल 19 हजार 300 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी।

गौलतलब है कि 14 नवम्बर 2024 को मोरेल बांध से मुख्य नहर में 47 दिन और पूर्वी नहर में 41 दिन तक पानी छोड़ा जाएगा । इसको लेकर बांध के पानी को तीन टुकड़ों में छोड़ने का खाका बनाया गया है। जो यह पानी 20 दिसंबर तक छोड़ा जाएगा । वहीं इस बार बांध 5 वर्षों बाद ओवर फ्लो होता हुआ नजर आया,  मोरेल बांध वर्ष 2019 में सक्रिय मानसून के चलते लबालब हुआ था, जब किसानों को खेती के लिए पानी छोड़ा गया था। ऐसे में पांच साल बाद अब 2024 में मानसून की मेहरबानी के चलते अच्छी बारिश हुई और बारिश से बांध का 30 फीट तक भराव हुआ है। इस मोरेल बांध से जब तक किसानों को सिंचाई का पर्याप्त पानी नहीं पहुंचेगा, तब तक पानी छोड़ा जाएगा।

इस बांध से 5800 मिलियन घन फीट पानी बहकर निकल गया, अगर सरकार यहां एक सिस्टम लगा कर इस 5800 MCFT पानी को दक्षिणी बिनौरी सागर, राहुवास बांध बाण गंगा और सांवा नदी में छोड़ा जा सकता था, जिससे करीब 10 वर्षों तक भू जल स्तर बढ़ सकता था। लेकिन सरकारी मशीनरी इस ओर ध्यान दें, इस पर वेस्ट एरिया में एक नया सिस्टम लगाए, तो दौसा जिले का भू-जल स्तर बढ़ाया जा सकता था । साथ ही दौसा जिले के मोरेल सागर बांध की खास बात यह है कि दौसा जिले का यह है और एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध है, जिसका फायदा दौसा जिले वासियों को ही नहीं मिल पा रहा है, जबकि इस बांध का तमाम रख रखाव और पैसा दौसा जिले से दिया जा रहा है ।

मत्स्य विभाग की ओर से जारी टेंडर में मोरेल बांध में मछली पालन का सरकार को 2 करोड़ 47 लख रुपए की सालाना आय हो रही है, जबकि मछुआरों की बात करें तो करीब 60 से 70 लोग मछली पकड़ने मछुआरे बांध में जाते हैं । इस बांध में करीब सवा करोड़ रुपए मछली पालन का बीज डाला गया है । वहीं इस बांध रऊ, मुलासी, तिलपिया नामक मछली बताई जाती है। बड़ा सवाल यह है कि सरकार को करोड़ों रुपए मिलने के बावजूद भी दौसा जिले के किसानों सहित सिंचाई के लिए पानी के लिए तरसना पड़ रहा है, जबकि इसका रखरखाव दौसा जिले के पास है । 


Content Editor

Chandra Prakash

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