संघर्ष से सफलता तक: पैरा खेलों की आइकन डॉ. दीपा मलिक की अनकही कहानी
Sunday, Feb 02, 2025-02:21 PM (IST)

जयपुर, 2 फरवरी 2025 । पंजाब केसरी से विशेष बातचीत में भारत की पहली महिला पैरालम्पिक मेडलिस्ट डॉ. दीपा मलिक ने अपनी जिंदगी के अनकहे पहलुओं और संघर्षों की कहानी साझा की। बचपन से लेकर पैरा खेलों में भारत का नाम रोशन करने तक का उनका सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि अदम्य साहस और अटूट जज़्बे की मिसाल भी है। पढ़िए इंटरव्यू के अंश
प्रश्न 1: आपकी आत्मकथा लिखने का विचार कैसे आया, और क्या खास बातें इसमें शामिल की हैं ?
उत्तर: यह किताब मेरे जीवन के 25 साल पूरे होने का प्रतीक है, जिसे हम सिल्वर जुबली कहते हैं। यह सिर्फ मेरी जन्मदिन की कहानी नहीं है, बल्कि वह दिन है जब मैंने दोबारा जन्म लिया। ऑपरेशन के बाद मेरी छाती के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया, लेकिन मैं शुक्रगुजार हूं कि मेरी जिंदगी बच गई। इस किताब में मैंने अपनी जर्नी के चैलेंजिंग पहलुओं को समेटने की कोशिश की है, ताकि जब कोई इसे पढ़े तो उनके अंदर सहानुभूति नहीं, बल्कि प्रेरणा और पॉजिटिव एटीट्यूड जागे।
प्रश्न 2: आपने अपने मानसिक संघर्षों और चुनौतियों के बारे में भी जिक्र किया है। क्या यह प्रक्रिया कठिन थी ?
उत्तर: हां, यह काफी मुश्किल था। अगर मैं अपने दर्द, रातों के आँसुओं और नकारात्मक सोच पर ज़्यादा फोकस करती, तो शायद यह किताब प्रेरणादायक बनने की बजाय सहानुभूति पाने का जरिया बन जाती। मैं चाहती थी कि लोग इसे पढ़कर मेरे हौसले और मेहनत को महसूस करें, न कि मेरे दर्द पर तरस खाएं।
प्रश्न 3: आपने बाइकर बनने की भी बात की है, वो सफर कैसा रहा ?
उत्तर: यह सफर आसान नहीं था। हजारों ईमेल, अपॉइंटमेंट्स और फंडिंग के लिए दर-दर की ठोकरें खाईं। लोगों को यह समझाना कि एक दिव्यांग महिला भी मोटरसाइकिल चला सकती है, अपने आप में बड़ी चुनौती थी। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और आखिरकार वो मुकाम हासिल किया।
प्रश्न 4: आपके व्यक्तिगत जीवन में भी कई मुश्किलें आईं। एक मां के रूप में आपका अनुभव कैसा रहा ?
उत्तर: मेरी बेटी को दिव्यांग होते देखना सबसे बड़ा दर्द था। जब मैं खुद लकवाग्रस्त थी और पति कारगिल युद्ध में थे, तब बच्चों की परवरिश एक और संघर्ष था। लेकिन पिताजी की बात ने मुझे संभाला: "जैसे हमने तुम्हारी सेवा की, वैसे तुम्हें अपनी बेटी की करनी है।" उस सोच ने मुझे आगे बढ़ने की ताकत दी।
प्रश्न 5: आपकी बेटी भी पैरा खेलों में आपके साथ खेलती है। यह अनुभव कैसा रहा ?
उत्तर: यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हम मां-बेटी की जोड़ी दुनिया में इकलौती है, जिसने साथ में पैरा खेलों में हिस्सा लिया और मेडल भी जीते। मेरी बेटी ने साइकोलॉजी की पढ़ाई की है और अब वह 34 साल की है, जबकि मैं 55 की हूं। हमारी जर्नी इस बात का प्रमाण है कि सही दिशा में मेहनत रंग लाती है।
प्रश्न 6: 2016 के बाद आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आए ?
उत्तर: 2016 में मेडल जीतने के बाद मेरी जिंदगी में तूफानी बदलाव आए। मीडिया अटेंशन, बैंक अकाउंट में बढ़ती रकम, और पब्लिक का प्यार, ये सब नई चीजें थीं। लेकिन सबसे बड़ा चैलेंज था खुद को जमीन से जुड़े रखना। यह अनुभव इतना गहरा था कि मैंने इसे अपनी अगली किताब के लिए बचा रखा है।
प्रश्न 7: आपने राजनीति में भी कदम रखा है। इसमें आपकी भूमिका क्या है ?
उत्तर: मुझे 2019 में आदरणीय अमित शाह जी ने पार्टी की सदस्यता दी थी। मैं पार्टी की नीतियों, गवर्नेंस के तरीकों, और दिव्यांग खेलों के लिए बनाई गई इंक्लूसिव पॉलिसीज का समर्थन करती हूं। मेरा मानना है कि देश की सेवा सिर्फ राजनीति से नहीं होती। युवाओं को प्रेरित करना, सकारात्मक सोच फैलाना और दिव्यांग खेलों को बढ़ावा देना भी देश की सेवा है।
प्रश्न 8: भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं ?
उत्तर: मेरा लक्ष्य है कि मैं और अधिक युवाओं को प्रेरित कर सकूं और दिव्यांग खेलों को एक नई ऊंचाई पर ले जाऊं। अगर कभी नेतृत्व की भूमिका में आने का मौका मिला, तो मैं देश के नवनिर्माण में और भी बड़ी भूमिका निभाना चाहूंगी।