बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की 98वीं जयंती पर उन्हें इस तरह किया याद
Thursday, Apr 17, 2025-06:47 PM (IST)

जयपुर। राजस्थान विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने बुधवार को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी की 98वीं जयंती के अवसर पर कांस्टीट्यूशन क्लब में असहमति और लोकतंत्र विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला को बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व सांसद समाजवादी नेता पंडित रामकिशन, विधायक गोपाल शर्मा, कवि लोकेश कुमार सिंह साहिल की उपस्थिति में सम्बोधित करते हुए कहा कि अपनी स्पष्टवादिता एवं निर्भीक छवि के कारण भारतीय राजनीति में विशिष्ट पहचान बनाने वाले प्रख्यात राजनेता एवं देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर जी, सादा जीवन और उच्च विचार की एक जीती-जागती मिसाल थे। उनका जीवन संघर्ष की पाठशाला में रहकर विकसित हुआ और झोपड़ी से प्रधानमंत्री कार्यालय तक की यात्रा को पूरा किया।
राठौड़ ने कहा कि स्व.चंद्रशेखर जी लम्बे समय तक डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ रहे। उन्होंने शोषित वर्ग के उत्पीड़न के खिलाफ मुखर होकर सड़क से संसद तक आवाज उठाई। इसी का परिणाम था कि वे देश में ‘युवा तुर्क’ और 'समाजवादी नेता' के रूप में उभरे। अपने पूरे जीवन में दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ी और देश में "फायरब्रान्ड" के नाम से मशहूर हुए। वह अपने मित्रों को हमेशा ही एक शेर सुनाया करते थे, जो मेरे जेहन में आज भी है। 'मैदाने इंतहां से घबरा के हट न जाना, तकमील जिंदगी है, चोटों पे चोट खाना। अब अहले गुलिस्तां को शायद न हो शिकायत, मैंने बना लिया है, कांटों में आशियाना।' उनका जीवन निर्भीक रहा है। वह क्रांतिकारी जोश एवं गर्म स्वभाव और अपने बेबाकी अंदाज से हर किसी को अपना मुरीद बना लेते थे।
राठौड़ ने इस दौरान कहा कि स्व.चंद्रशेखर जी ने इंदिरा गांधी की अधीनता को नकारते हुए जेपी नारायण के आंदोलन को अपना समर्थन दिया। वह 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक रहे, जिसे आपातकाल में बंद कर दिया गया। इस दौरान चन्द्रशेखर जी को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेज दिया गया। वह उस दौर में जेल जाने वाले गिने-चुने कांग्रेसी नेताओं में से एक थे। जेल में रहकर उन्होंने हिंदी में जेल डायरी लिखी - ''मैं विचारों को कैद नहीं होने दूंगा। मेरे शरीर को भले जेल में रखो, मेरा मन देश की जनता के साथ रहेगा।" इमरजेंसी के दौरान लिखी गई यह डायरी क्लासिक डायरी लेखन में शामिल है। चंद्रशेखरजी की यह जेल डायरी गहरे अर्थों में आपातकालीन निरंकुशता के प्रतिरोध में लिखी जाने के कारण लोकतंत्र का उद्घोष भी थी।
राठौड़ ने कहा कि राठौड़ ने कहा कि चंद्रशेखर एक आदर्शवादी नेता थे। वह अपने आदर्शों और मूल्यों के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहते थे उन्होंने समाज और शोषित वर्ग को एक बेहतर दिशा में ले जाने के लिए निरंतर काम किया। निजी हितों से ऊपर उठकर समाज के हितों को सदैव प्राथमिकता दी और अपने कार्यों में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखते हुए एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया। जिसे आज भी याद किया जाता है।
राठौड़ ने कहा कि सामाजिक सरोकारों और देश की आजादी के लिए गाँधी पैदा हुए, तो समाजवाद को जमीन पर लाने और नये भारत के निर्माण के लिए इस देश की माटी पर चन्द्रशेखर जी पैदा हुए। वे ताउम्र आम आदमी की आवाज बने रहे। वे सबके दोस्त और मददगार थे। ये सब गुण एक संत में होते हैं। सही मायने में वह राजनीति के संत थे। जो भी व्यक्ति उनसे एक बार मिला, समझो बस उन्हीं का बन कर रह गया। फिर चाहे उसकी विचारधारा अलग रही हो या दल की चौखट, वह बस चंद्रशेखर जी का मुरीद बन जाता था। जाति-पात, मजहब की राजनीति से दूर संघर्ष की राजनीति को प्राथमिकता दी। उनकी निर्भीकता, अदम्य साहस, बेबाक वक्ता और अन्याय के विरुद्ध संघर्षों के लिए उन्हें युगों - युगों तक याद किया जाएगा।