संविधान दिवस पर वासुदेव देवनानी का विशेष लेख: भारतीय संविधान-लोकतंत्र की आत्मा
Wednesday, Nov 26, 2025-09:01 AM (IST)
जयपुर। भारत का संविधान केवल एक विधिक दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा, जन-संघर्षों का प्रतीक और लोकतांत्रिक भविष्य की दिशा दिखाने वाला प्रकाश स्तंभ है। 1947 में देश को अंग्रेजी शासन की सदियों की गुलामी से मुक्ति और आजादी मिलने के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किये गए। इस महान दस्तावेज़ ने भारत की स्वतन्त्रता को नैतिक और संस्थागत ढांचा प्रदान किया। संविधान दिवस इस ऐतिहासिक क्षण को स्मरण करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का एक सुनहरा अवसर है।
संविधान दिवस की घोषणा और सार्थकता
भारत ही नहीं पूरे विश्व ने देखा कि वर्ष 2014 में जब नरेन्द्र मोदी जी पहली बार देश का प्रधानमन्त्री बने तब उन्होंने लोकतन्त्र के मंदिर संसद की सीढ़ियों पर शीश नवाया और संसद के केन्द्रीय कक्ष में संविधान को अपने माथें से लगा नमन किया। बाद में वर्ष 2015 में उनकी सरकार ने प्रति वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य नागरिकों में संविधान के प्रति जागरूकता बढ़ाना, मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को समझाना तथा संविधान निर्माताओं के योगदान का सम्मान करना है। आज जब लोकतंत्र वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब संविधान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि राष्ट्र की शक्ति उसके संवैधानिक चरित्र में निहित है। इसका उद्देश्य संविधान की सोच, संवैधानिक सिद्धांतों और नागरिक कर्तव्यों के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाना है। संविधान केवल सरकार का ढांचा तय नहीं करता, बल्कि नागरिकों के अधिकारों, स्वतंत्रताओं और गरिमा की रक्षा भी करता है। संविधान ही वह आधार है जो राष्ट्र को स्थिरता और दिशा प्रदान करता है।
संविधान निर्माण की ऐतिहासिक यात्रा
स्वतंत्रता के बाद भारत को एक ऐसे संविधान की आवश्यकता थी जो विविधताओं से भरे इस देश को एकसूत्र में बाँध सके। 1946 में गठित भारत की संविधान सभा ने अथक परिश्रम किया। संविधान पर 165 दिनों तक खुली चर्चा, बहस एवं विस्तृत विचार-विमर्श हुआ। डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली ड्राफ्टिंग कमेटी ने विश्व भर के संविधानों का अध्ययन कर भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप सर्वश्रेष्ठ सिद्धांतों और सर्वोत्तम तत्वों को इसमें शामिल किया। 2 वर्ष 11 माह और 18 दिनों की व्यापक चर्चा के बाद संविधान का निर्माण हुआ तथा 26 जनवरी 1950 को यह लागू हुआ। यह यात्रा भारतीय गणराज्य और भारत के लोकतंत्र की शक्तिशाली नींव का प्रमाण है। यह वही लोकतांत्रिक यात्रा एवं परंपरा है जो भारत को आज भी वैश्विक मंच पर सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में पहचान दिलाती है।
भारतीय संविधान की विशेषताएँ
भारत का संविधान अपनी गहराई, व्यापकता और दूरदर्शिता के कारण अद्वितीय है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—
1. मौलिक अधिकार
संविधान नागरिकों को छह मौलिक अधिकार देता है समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा और संस्कृति संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचार का अधिकार। ये अधिकार लोकतंत्र की धड़कन माने जाते हैं और नागरिकों की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करते हैं।
2. मौलिक कर्तव्य
संविधान का भाग-4 (क) नागरिकों को कर्तव्यों के प्रति सचेत करता है। पर्यावरण संरक्षण से लेकर राष्ट्र की अखंडता बनाए रखने तक के कर्तव्य नागरिक जीवन में सामूहिक जिम्मेदारी की भावना पैदा करते हैं।
3. लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था
भारत ने आजादी के तुरंत बाद सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार अपनाया। यह कदम अत्यंत प्रगतिशील था और हर नागरिक को बराबर राजनीतिक अधिकार देने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
4. संघीय ढांचा
भारत के संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन वाली संघीय व्यवस्था दी गई है, साथ ही एकीकृत शक्ति संरचना के माध्यम से संकट की स्थितियों को संभालने की क्षमता भी रखी गई है। केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का संतुलन भारत की विविधता को एकता में पिरोता है।
5. स्वतंत्र न्यायपालिका
न्यायपालिका नागरिक अधिकारों की संरक्षक है। यह लोकतंत्र में आवश्यक ‘चेक एंड बैलेंस’ बनाए रखती है।सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और लोकतंत्र की शुचिता बनाए रखते हैं।
6. धर्मनिरपेक्षता एवं सामाजिक न्याय
भारत के संविधान में सभी धर्मों का सम्मान और समान व्यवहार का सिद्धांत निहित है। समाज के कमजोर वर्गों के एससी,एसटी,ओबीसी, महिलाएँ एवं बच्चों के लिए विशेष संरक्षण सुनिश्चित करता है। संविधान में इन वर्गों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिससे समानता और न्याय का मार्ग प्रशस्त हुआ है ।
डॉ. आंबेडकर : भारत के संविधान शिल्पकार
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भारतीय समाज की जटिलताओं को निकट से समझ कर संविधान में सामाजिक न्याय, समानता और गरिमा को मूल केंद्र बनाया। उन्होंने कहा था कि “संविधान अच्छा है या बुरा यह इस पर निर्भर करेगा कि इसे चलाने वाले लोग कितने अच्छे हैं।” यह संदेश आज भी अत्यंत प्रासंगिक है जितना कि स्वतंत्रता के तुरंत बाद प्रासंगिक था।
संविधान की डिजिटल युग में प्रासंगिकता
21वीं सदी का भारत भी डेटा सुरक्षा, साइबर अपराध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,गलत सूचना, पर्यावरण संकट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े नैतिक प्रश्न जैसी कई नई चुनौतियों से जूझ रहा है। संविधान हमें इन मुद्दों पर संतुलित दृष्टिकोण देता है और नागरिक अधिकारों एवं कर्तव्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। हमारा संविधान तकनीकी नवाचार के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को कायम रखने में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
भारत की एकता की आधारशिला
संविधान दिवस पर देश भर में कई गतिविधियाँ जैसे विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों में संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक पाठ, निबंध, भाषण, क्विज़ प्रतियोगिताएँ, विधिक जागरूकता कार्यक्रम, विशेष व्याख्यान और गोष्ठियाँ, संसद और विधानसभाओं में विशेष आयोजन आदि होतें है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य नागरिकों में संवैधानिक चेतना को मजबूत करना है। हमारा संविधान कहता है कि हर भारतीय समान है। कोई व्यक्ति धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र या वर्ग के आधार पर बड़ा या छोटा नहीं है। हमारा संविधान भारत की बहुलतावादी संस्कृति को एक सूत्र में बाँधने वाला सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। जहाँ अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं, सभी के लिए अवसर खुले है तथा सामाजिक न्याय और समावेशी विकास आधुनिक भारत की आत्मा है। यह संविधान हमें विविधता में एकता का संदेश देता है। भारत का संविधान केवल शासन चलाने का एक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों, संघर्षों और आदर्शों का महान घोषणा पत्र है। जब भारतीय संविधान को अंगीकृत किया था, तब भारत के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ था । एक ऐसा अध्याय, जिसने उपनिवेशवाद से स्वतंत्र राष्ट्र बनने की राह को स्पष्ट दिशा प्रदान की। आज के दिन को हम संविधान दिवस या राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन इसकी सार्थकता इससे कहीं अधिक व्यापक है। यह दिवस हमें लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने और संवैधानिक मूल्यों को जीवन का हिस्सा बनाने की प्रेरणा देता है।
संविधान दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक चरित्र का उत्सव है। संविधान दिवस हमें यह सीख देता है कि भले ही लोकतंत्र मतपत्र से बनता है, परंतु हमारा देश जागरूकता, कर्तव्यपरायणता और संवैधानिक मूल्यों से चलता है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की वास्तविक शक्ति संविधान के अनुशासन, मूल्य और आदर्शों में निहित है। संविधान की रक्षा केवल न्यायपालिका या सरकार का कार्य नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। आज के युवाओं के लिए यह दिन विशेष रूप से प्रेरक है। युवा ही वह पीढ़ी हैं जो आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाएगी। आज की युवा पीढ़ी इस दस्तावेज़ को जितना समझेगी, उतना ही भारत का लोकतांत्रिक भविष्य मजबूत होगा। यदि वे संविधान के आदर्शों न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को आत्मसात करें, तो भारत निश्चित ही एक सशक्त, समृद्ध और प्रगतिशील राष्ट्र बनेगा। हम सबका कर्तव्य है कि संविधान के सिद्धांतों न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को जीवन का मार्गदर्शक बनाएं। संविधान दिवस, भारतीय गणराज्य और संविधान के प्रति अटूट आस्था व्यक्त करने का एक ऐसा अवसर है जिसे मनाना हर भारतीय का कर्तव्य है।
राजस्थान विधानसभा में संविधान दीर्घा का निर्माण
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में मैंने राजस्थान विधानसभा में जो नवाचार करने के विनम्र प्रयास किये है उनमें विधानसभा के राजनैतिक आख्यान संग्रहालय का उल्लेख करना यहाँ प्रासंगिक है। इस संग्रहालय में एक संविधान दीर्घा का निर्माण भी किया गया है। संविधान दीर्घा में मूल संविधान के बाईस भागों के आरम्भ में दर्शायी गयी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। संविधान के बाईस भागों के मुख पृष्ठ पर भारत की संस्कृति और स्वाभिमान को दिखाती हुई तस्वीरें हैं। इन तस्वीरों में भारत की प्राचीन सभ्यता मोहनजोदड़ो से लेकर महाभारत में कुरुक्षेत्र और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए गीता के ज्ञान, भगवान श्री राम की लंका विजय, भगवान बुद्ध का जीवन चरित्र, महान सम्राट अशोक, उज्जैन के न्यायप्रिय महाराज विक्रमादित्य के राजदरबार, प्राचीन वैदिक गुरुकुल, नालंदा विश्वविद्यालय, भगवान नटराज, रामभक्त श्री हनुमान के साथ ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, छत्रपति वीर शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह को प्रदर्शित किया गया है। संविधान दीर्घा का उद्देश्य आमजन और युवाओं में राष्ट्र और संविधान का बोध कराने के साथ ही संविधान, संस्कृति और नैतिकता के प्रति जागरुकता लाना है। विधान सभा में हर वर्ष संविधान दिवस समारोह भी आयोजित किया जा रहा है ।
—वासुदेव देवनानी, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष
