आर्टिफ़िशियल क्लाउड सीडिंग: कृत्रिम बारिश की तकनीक, खर्च और सच"
Tuesday, Aug 12, 2025-09:41 AM (IST)

आर्टिफ़िशियल क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक (Weather Modification Technique) है, जिसमें बादलों में कृत्रिम रूप से ऐसे रसायन या कण छोड़े जाते हैं जो पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टलों का निर्माण बढ़ाते हैं, ताकि वर्षा (बारिश या बर्फबारी) को प्रेरित किया जा सके।
इसका उद्देश्य –
सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बारिश बढ़ाना
जलाशयों को भरना
धूल/प्रदूषण को कम करना
ओलों को रोकना या कम करना
यह तकनीक कैसे काम करती है
स्टेप-बाय-स्टेप प्रक्रिया
बादलों का चयन: ऐसे बादल चुने जाते हैं जिनमें नमी पर्याप्त हो लेकिन वे वर्षा नहीं कर रहे हों।
सीडिंग एजेंट का चयन:
सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) – ठंडे बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनाने के लिए
सोडियम क्लोराइड (NaCl) – गर्म बादलों में नमी को बूंदों में बदलने के लिए
ड्राई आइस (ठोस CO₂) – तेजी से तापमान घटाने के लिए
विधि:
हवाई जहाज से रसायन का छिड़काव
रॉकेट या आर्टिलरी शेल से कण भेजना
ज़मीन-आधारित जनरेटर से वायुमंडल में उड़ाना
संघनन (Condensation) प्रक्रिया:
रसायन बादलों में जाकर सूक्ष्म कणों के रूप में न्यूक्लिएशन साइट बनाते हैं, जिस पर जल वाष्प संघनित होकर बूंदें बनाता है।
बूंदों का विकास और वर्षा:
बूंदें बड़ी होकर गुरुत्वाकर्षण के कारण गिरने लगती हैं यानि बारिश/बर्फबारी शुरू हो जाती है।
सीडिंग के कितने समय बाद बारिश होती है
सामान्यतः 15 मिनट से 1 घंटे के भीतर असर देखा जा सकता है, लेकिन मौसम की स्थिति, हवा की गति, बादल की नमी और तापमान पर समय बदल सकता है।कुछ मामलों में 2–3 घंटे भी लग सकते हैं।
अब तक कहां-कहां यह प्रयोग हो चुका है
राजस्थान – 1980s और 2010 के दशक में सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कई बार योजना बनी लेकिन अमल में नहीं आई।
कर्नाटक – 2003, 2017 में ‘Varshadhare’ प्रोजेक्ट
महाराष्ट्र – 2015–2016 में मराठवाड़ा में
तमिलनाडु – सूखा राहत के लिए कई बार
उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश – सीमित स्तर पर
दिल्ली NCR – 2023 में प्रदूषण कम करने के लिए प्रस्तावित, पर मौसम के कारण रद्द
दुनिया में
अमेरिका – 1940s से; आज भी कैलिफोर्निया, कोलोराडो में
चीन – ओलंपिक 2008 में बारिश रोकने और प्रदूषण घटाने के लिए
रूस – राष्ट्रीय समारोहों में
ऑस्ट्रेलिया – बर्फबारी और जल स्रोत बढ़ाने के लिए
UAE (दुबई, अबू धाबी) – रेगिस्तानी क्षेत्रों में कृत्रिम बारिश
इज़राइल – दशकों से जल संकट कम करने में
थाईलैंड – “Royal Rainmaking Project”
खोज और पहला प्रयोग कहां हुआ
1946 में डॉ. विंसेंट शेफर (Vincent Schaefer), General Electric (GE) रिसर्च लैब, USA ने Dry Ice से पहला सफल प्रयोग किया।
सिल्वर आयोडाइड तकनीक:
उसी साल Bernard Vonnegut (GE) ने Silver Iodide इस्तेमाल किया।
पहला वास्तविक प्रयोग:
1946–47 में अमेरिका के New York और New Hampshire के ऊपर विमान से सीडिंग कर बर्फबारी कराई गई।
खर्च कितना आता है
खर्च कई फैक्टर पर निर्भर करता है:
एजेंट (सिल्वर आयोडाइड महंगा, NaCl सस्ता)
ऑपरेशन का पैमाना
विमान किराया
स्टाफ और मौसम निगरानी
औसत अनुमान:
भारत में: ₹4–10 लाख प्रति घंटे उड़ान
पूरे ऑपरेशन का खर्च: ₹50 लाख से ₹5 करोड़ (क्षेत्र और दिनों पर निर्भर)
दुनिया में: $5,000–$15,000 प्रति उड़ान घंटा; बड़े प्रोजेक्ट $1–5 मिलियन/सीज़न
बारिश की गारंटी 100% गारंटी है ? नहीं, अगर बादलों में पर्याप्त नमी नहीं है तो असर नहीं होगा।
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