राजस्थान के 25 जिलों में अधर में लटकी जूलीफ्लोरा हटाने की योजना, 60 हजार हेक्टेयर जमीन पर मंडरा रहा खतरा

Thursday, Jul 24, 2025-03:30 PM (IST)

राजस्थान में जूलीफ्लोरा (जंगली बबूल) के बढ़ते खतरे को लेकर बनी योजना पिछले कई वर्षों से अधर में लटकी हुई है। वर्ष 2010-11 में इस आक्रामक पौधे को हटाने के लिए प्रदेश के 25 जिलों में काम शुरू किया गया था, लेकिन बजट की कमी के चलते यह मुहिम बीच में ही रुक गई। रणथम्भौर टाइगर रिजर्व, मुकुंदरा हिल्स और रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व सहित कई अभयारण्यों में जूलीफ्लोरा को हटाने का कार्य शुरू किया गया था। लेकिन वित्तीय अस्थिरता के चलते यह काम अधूरा रह गया। इस कारण राज्य के करीब 60,000 हेक्टेयर भूमि पर यह पौधा आज भी तेजी से फैल रहा है और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा बन चुका है।

केंद्र सरकार को भेजा गया प्रस्ताव

वन विभाग ने 2010-11 में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था जिसमें 25 जिलों को शामिल किया गया था। इनमें सवाईमाधोपुर, करौली, कोटा, बूंदी, बाड़मेर, सीकर, भरतपुर, धौलपुर, जैसलमेर, अलवर, टोंक, डूंगरपुर, सिरोही, अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, उदयपुर, पाली और जयपुर शामिल हैं।

कितना काम हो सका?

वन विभाग ने इस कार्य के लिए 954 करोड़ रुपये का बजट मांगा था। आंशिक बजट मिलने के बाद कुछ जिलों में कार्य शुरू हुआ —

अजमेर: 2500 हेक्टेयर

मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (कोटा): 2 वर्ग किमी

अलवर: 159 हेक्टेयर

सवाईमाधोपुर: 600 हेक्टेयर

टोंक: 400 हेक्टेयर

रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व (बूंदी): 200 हेक्टेयर

लेकिन यह काम सतत रूप से नहीं हो पाया। इसके चलते जूलीफ्लोरा की जड़ें या बीज बार-बार उग आते हैं और समस्या जस की तस बनी रहती है।

क्यों जरूरी है उन्मूलन?
जूलीफ्लोरा एक विदेशी प्रजाति है जो स्थानीय वनस्पतियों को खत्म कर देती है। यह न सिर्फ जैव विविधता के लिए खतरा है, बल्कि यह जमीन को बंजर भी बना देती है। इसके बीज जमीन में कई सालों तक निष्क्रिय रहकर दोबारा उग सकते हैं।

वन विभाग की चुनौती
रणथम्भौर और अन्य क्षेत्रों में विभाग द्वारा जूलीफ्लोरा को हटाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए निरंतर बजट और निगरानी जरूरी है। जब तक इस पर विशेष फंडिंग और दीर्घकालिक योजना नहीं बनेगी, तब तक इस संकट से निपटना मुश्किल रहेगा।


Content Editor

Kuldeep Kundara

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