मंत्री, विधायक पुत्रों की खेल राजनीति में एंट्री क्यों, जानिए कैसे ?

Thursday, Sep 19, 2024-04:11 PM (IST)

यपुर, 19 सितंबर 2024 । राजस्थान में नई पीढ़ी के लिए सियासत में एंट्री करना थोड़ा मुश्किल हो चला है, ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीति में प्रवेश की पहली सीढ़ी छात्रसंघ चुनावों को माना जाता हैं। और इन्ही छात्रसंघ चुनावों से सूबे की सियासत को समय-समय पर एक से बढ़कर एक नेता भी मिले हैं,.मगर पिछले दो साल से राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव हो नहीं पा रहे हैं। पिछले साल गहलोत सरकार ने चुनावों पर बैन लगाया तो अब भजनलाल सरकार फिर से चुनाव कराने के मूड में नजर आ नहीं रही हैं। ऐसे में अब आम युवा साथियों के लिए तो राजनीति में प्रवेश जरा मुश्किल हो गया हैं। मगर लगता है कि नेताओं के बेटों के लिए दूसरी राह खुल गई हैं, जो शायद और भी ज्यादा आसान हैं।  

छात्रसंघ चुनाव पर बार-बार रोक लगने या उम्र निकल जाने से अब तमाम नेताओं के बेटों को सियासी दांव-पेंच सीखने के लिए खेल संघ काफी रास आ रहे हैं। इसमें राजस्थान की फेहरिस्त बहुत लंबी है। अमूमन कोई भी जिला इससे अछूता नहीं है। आगामी दिनों में कई जिला क्रिकेट संघों के जरिए कई मंत्री और विधायकों के बेटों को एंट्री मिलना तय है। क्रिकेट की पिच पर लगातार होती नेताओं की एंट्री से माना जा रहा है, कि आरसीए के चुनावों में अंदरखाने सियासी पारा गर्माएगा। खास बात है, कि राजस्थान के खेल संघों में खेल कोड 2005 लागू है। वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि खेल संघ यदि खेल कोड 2011 की पालना करें तो एक ही पद पर कई साल से जमे पदाधिकारियों की छुट्टी हो सकती है। आज बात इसी मुद्दे पर, मगर उससे पहले जान लेते है कि खेल संघों में एंट्री होती कैसे हैं। 

खेल संघ के चुनाव मैदान में उतरने के लिए सबसे पहले किसी क्लब में सदस्यता ली जाती है और फिर क्लब के जरिए पहले जिला कार्यकारिणी में पद दिया जाता है। इसके बाद राय और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एंट्री कराई जाती है। अब देखा जाए तो खेल संघों की सत्ता संभालने के लिए एक व्यक्ति को उस खेल का एक्सपर्ट होना चाहिए, उस खेल को लेकर हर एक खूबी से भरपूर होना चाहिए। अब आप में से कई लोग कहेंगे, कि इसके लिए तो कोई वरिष्ठ कोच आदि को इसकी जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। मगर राजस्थान में गणित थोड़ा उल्टा हैं। राजस्थान में खेल संघों की जिम्मेदारी अमूमन नेता पुत्रों के हाथ में रही है, फिर चाहे उनका उस खेल से कोई लेना-देना हो या फिर नहीं हो। 

अब आप देखिए कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत आरसीए की कमान संभाल चुके हैं और वर्तमान में राजसमंद जिला क्रिकेट संघ के कोषाध्यक्ष भी हैं। उधर भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ के पुत्र पराक्रम सिंह चूरू जिला क्रिकेट संघ में अध्यक्ष हैं। चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह नागौर जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं। वहीं राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी के पुत्र आशीष तिवाड़ी सीकर जिला क्रिकेट संघ में कोषाध्यक्ष हैं। शिक्षा और पंचायतराज मंत्री मदन दिलावर के पुत्र पवन दिलावर बारां जिला क्रिकेट संघ के कोषाध्यक्ष हैं और पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया के पुत्र यश जैन बारां क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं।

केंद्रीय कानून एवं विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के बेटे रवि शेखर मेघवाल को पिछले साल राजस्थान साइकिलिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। यह पद करीब पांच साल से खाली था। बीकानेर जिला प्रदेश में साइकिलिंग का गढ़ भी है। वहीं केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत दो खेल संघों की कमान संभाल रहे है। शेखावत फिलहाल राजस्थान बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष हैं। वहीं सांसद मुरारीलाल मीना दौसा जिला बास्केटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। 

राज. खेल संघर्ष समिति के अध्यक्ष ओपी माचरा का इस मामले में कहना है कि कई खेल संगठन ऐसे है जहां कई वर्ष से एक ही परिवार का कब्जा है। नए लोग आएंगे तो कुछ नया भी होगा। कई जिला क्लबों में तो कुछ पदाधिकारी तीन-चार दशक से भी जमे हुए है। खैर, आपका इस मामले पर क्या कुछ कहना है, जरूर बताइएगा। 


Content Editor

Chandra Prakash

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