अजमेर दरगाह शरीफ की कहानी, जहां कभी पूरी हुई थी अकबर की मन्नत?
Thursday, Nov 28, 2024-04:59 PM (IST)
मुगल साम्राज्य के सम्राट अकबर के पास हिंदुस्तान का साम्राज्य था, लेकिन उन्हें एक बड़ी चिंता सता रही थी। वह चाहते थे कि उन्हें एक बेटा हो, क्योंकि दो बेटे, हसन और हुसैन, एक महीने से अधिक समय तक जीवित नहीं रह सके। आईने अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है कि राजस्थान में अपने प्रवास के दौरान अकबर को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बारे में पता चला, जहां हर मन्नत पूरी होती है। अकबर ने मन में यह संकल्प लिया कि अगर उन्हें एक बेटा होगा, तो वह पैदल अजमेर आकर सिर झुका देंगे। इसके बाद अकबर आगरा में शेख सलीम चिश्ती से भी मिले, जो सूफी संत थे। अकबर उनसे आशीर्वाद लेने के बाद उनकी कृपा से कुछ समय बाद एक बेटा हुआ, जिसे उन्होंने सलीम नाम दिया, जो बाद में जहांगीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। .
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन मान्यता है कि उनकी जन्मभूमि ईरान के सिस्तान शहर में थी। बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता को खोने के बाद, उन्होंने आध्यात्मिक जीवन की ओर रुख किया। बुखारा में चिश्ती आदेश के संत उस्मान हारूनी से मिलने के बाद उनका जीवन बदल गया। इसके बाद उन्होंने मक्का और मदीना की यात्रा की और एक दिन एक दिव्य दृष्टि में उन्हें दिल्ली जाने का आदेश मिला। इस प्रकार उनकी यात्रा भारत की ओर शुरू हुई और उन्होंने अजमेर में बसने का निर्णय लिया, जहां उन्हें "गरीब नवाज" के नाम से सम्मानित किया गया।
अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास और महत्व
मोइनुद्दीन चिश्ती की हिंदुस्तान यात्रा 12वीं सदी के अंत में शुरू हुई, और उन्होंने अजमेर में अपना आध्यात्मिक केंद्र स्थापित किया। 1236 में उनकी मृत्यु के बाद, उनके मकबरे को दरगाह के रूप में परिवर्तित किया गया। समय के साथ दरगाह का विस्तार हुआ और कई राजाओं और सुलतान ने इसमें योगदान दिया। मांडू के महमूद खिलजी ने यहां एक मस्जिद बनवाई, जबकि मुगलों के समय में भी इस दरगाह में कई निर्माण कार्य हुए। मुगलों से विशेष संबंध होने के कारण, अकबर ने यहां कई बार आकर चादर चढ़ाई। 1911 में रानी मेरी ने अजमेर शरीफ का दौरा किया और दरगाह की एक टंकी की मरम्मत के लिए दान दिया, जिसे आज विक्टोरिया टैंक के नाम से जाना जाता है।
अजमेर शरीफ दरगाह अब एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन चुका है, जहां हर साल लाखों लोग आते हैं। यहां हर धर्म के लोग पूजा-अर्चना करते हैं और चादर चढ़ाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2024 में इस दरगाह में चादर चढ़ाई। दरगाह में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा स्थित है, जिसका गुंबद सफेद संगमरमर से बना है और यह बहुत ही आकर्षक है।
अजमेर शरीफ का उर्स हर साल रजब महीने के दौरान मनाया जाता है, जो इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से होता है। इस अवसर पर एक विशाल जुलूस दिल्ली स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से अजमेर तक यात्रा करता है। उर्स के दौरान, दरगाह में विशाल देगों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें चावल, घी, चीनी और ड्राई फ्रूट मिलाकर तबर्रुक तैयार किया जाता है। बड़ी देग का डायमीटर 10 फीट है और इसमें 2800 किलो चावल पकाया जा सकता है।
1992 में अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ा रेप केस
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिमों का नाम 1992 में एक बड़े विवाद में सामने आया था। फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती नामक तीन खादिमों का नाम एक रेप मामले में लिया गया था। ये तीनों दरगाह के खादिम और यूथ कांग्रेस के लीडर्स थे। आरोप था कि ये लोग स्कूल की लड़कियों को फार्म हाउस पर बुलाकर उनसे दुष्कर्म करते थे और फिर उनकी तस्वीरों से उन्हें ब्लैकमेल करते थे। मामले में कई अन्य नेता और सरकारी अधिकारी भी शामिल थे, जिसके कारण यह मामला लंबे समय तक दबा रहा। बाद में जब स्थानीय अखबार में खबर प्रकाशित हुई, तो सीआईडी ने मामले की जांच की और आठ लोगों को अदालत से आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
अजमेर दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा
हाल ही में अजमेर शरीफ दरगाह में एक नया विवाद उभरा है, जब हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया कि दरगाह में कभी संकट मोचन महादेव का मंदिर था। उन्होंने यह दावा 2 साल की रिसर्च के बाद किया, जिसमें अजमेर के प्रतिष्ठित जज हरबिलास शारदा की किताब अजमेर : हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का उल्लेख किया गया था, जिसमें इस बात का जिक्र था। इस मामले को लेकर अजमेर सिविल कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है, जिसमें संबंधित पक्षों को अपना पक्ष प्रस्तुत करना है।
अजमेर शरीफ दरगाह का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
अजमेर शरीफ दरगाह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक है। यहां हर धर्म के लोग आकर पूजा-अर्चना करते हैं और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर अपनी मन्नतें पूरी करने की उम्मीद रखते हैं। अजमेर का नाम हिंदू राजाओं से लेकर मुगलों तक के समय से इस दरगाह से जुड़ा हुआ है, और यह स्थल भारत की धार्मिक एकता और भाईचारे का प्रतीक बना हुआ है।