संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा से उत्पन्न विश्वास धराशायी- समृध्द भारत की आशाओं पर हुआ तुषारापात
Tuesday, Jul 23, 2024-05:34 PM (IST)
जयपुर, 23 जुलाई,2024 । कृषि प्रधान देश में कृषि एवं किसानों की अपेक्षा से समृध्द भारत की आशाओं पर तुषारापात हुआ है। वहीं बजट दिशाहीन है, युवाओं को तनाव से मुक्ति दिलाने तथा उनके परिजनों की चिंताओं को समाप्त करने की दिशा होती तो इस बजट में कृषि एवं ग्रामोद्योगों के तालमेल से 65 करोड़ बेरोजगारों को आजीविका के अवसर प्रदान करना संभव था। इस बजट में किसानों पर ध्यान केन्द्रित रखने की बात तो कही गई किंतु बजट में उनकी उपजो के लाभकारी मूल्य दिलाने की चर्चा तक नहीं है, जबकि सरकार निरंतर इसकी घोषणा करती रहती है। बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने यह बात कही है कि बजट में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने के कारण किसानों को उनकी उपजो के लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं होते हैं।
यथा - इस वर्ष सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से 1450 रुपए प्रति क्विंटल तक का घाट उठाकर बेचना पड़ी, वही मूंग में एक क्विंटल पर 3000 रूपए तक के दाम कम प्राप्त हुए। बाजरा जैसे मोटे अनाज की तो राजस्थान जैसे प्रमुख उत्पादक राज्य में खरीद ही आरंभ नहीं हुई। मोटे अनाज दलहन एवं तिलहन की उपज की भेद-भाव पूर्ण खरीद नीति के कारण किसान उन मूल्यों से भी वंचित है, जिन्हें सरकार न्यूनतम मानती है । मूंग, चना एवं तिलहन के कुल में से 75 प्रतिशत उत्पादों को तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की परिधि से बाहर धकेला हुआ है। यह स्थिति तो तब है जब पिछले 14 वर्षों से अधिक समय से किसान अपनी कमाई छोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून की लड़ाई लड़ रहे हैं।
दूसरी और किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में भी बजट मौन है। उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में सिंचाई सर्वाधिक कारगर उपाय है। उसके संबंध में देशभर में ‘नदी से नदी जोड़ो’ के अंतर्गत 30 राष्ट्रीय महत्व की लिंक परियोजनाओं को प्राथमिकता देना तो दूर उनके लिए बजट में आवंटन तक नहीं है। इन परियोजनाओं पर अनुमानित खर्च 8.44 लाख करोड़ का माना है, जो बजट की कुल राशि का 17.50 प्रतिशत है। 75 वर्षों के अमृत काल के उपरांत भी कृषि योग्य कुल भूमी में से सिंचित क्षेत्र 39.55 प्रतिशत है जिसमे भी कुल सिंचित क्षेत्र में से सरकारी नहरों से होने वाली सिंचाई 22.72 प्रतिशत है। सर्वाधिक जोखिम भरा क्षेत्र होने से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसान की आय को स्थिर नही रख सकी।
इस कारण 2016-17 से वर्ष 2020-21 तक पांच वर्षो की अवधि में कंपनियों को प्रति वर्ष ओसत लाभ 6 करोड़ 97 लाख 22 हजार रुपये प्राप्त हुए है। इससे ‘धन किसानों का, तंत्र सरकारों का, लाभ कंपनियों का’ के कारण ही यह लोकुक्ति चरितार्थ हुई। जिन किसानों से प्रीमियम वसूला जाता है, उनकी फसलों की क्षति होने पर क्लेम प्राप्ति के लिए किसानों की जूतियां टूट जाती है, किन्तु उनको क्लेम की राशि प्राप्त नहीं होती है। यह योजना किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रभाव में लायी गई थी किन्तु उसके परिणाम उसके प्रयोजन के विपरीत है।
सरकार की नीतियों के इस उदहारण से सरकार की नियत की जानकारी हो जाती है। भारत सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प दोहरा रही है, जो किसानों की समृध्दि के बिना संभव नहीं है। इसलिए यह बजट समृध्द भारत की आशाओं पर तुषारापात करने वाला है। 3 करोड़ मकान बना कर देना तो ‘गरीब को छप्पर’ योजना के अनुसरण में ही चल रहा है। 75 वर्षों के अमृत काल के उपरांत भी गरीब को छप्पर बनाने में सक्षम नहीं बनाया गया बल्कि उसे हाथ पसारने वाला ही रखा गया है। यह बजट की दिशा की खोट है। यदि बजट की दिशा सही होती तो वर्ष 2047 में समृध्द भारत के लिए ग्राम राज की नीतियों की ओर कदम रखे जाते।