राजस्थानी रामलीला : भाषा और संस्कृति के संरक्षण की अनोखी पहल
Friday, Sep 27, 2024-08:09 PM (IST)
हनुमानगढ़, 27 सितंबर 2024 । राजस्थान के सूरतगढ़ शहर के निवासी और राजस्थानी भाषा प्रेमी, मनोज स्वामी ने एक अनोखी पहल शुरू की है जो न केवल राजस्थानी संस्कृति को जीवित रखती है, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर भी लाती है। उन्होंने पिछले दस वर्षों में राजस्थानी भाषा में रामलीला का मंचन किया है, जो अब न केवल राजस्थान में, बल्कि विश्वभर में बसे राजस्थानियों के लिए एक पसंदीदा कार्यक्रम बन चुका है। इस वर्ष रामलीला का मंचन 3 अक्टूबर से सूरतगढ़ के ब्राह्मण धर्मशाला के हनुमान चौक में रात 9 से 11 बजे तक प्रतिदिन किया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार इसका लाइव प्रसारण डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से पूरी दुनिया में किया जाएगा, ताकि हर व्यक्ति, चाहे वह राजस्थान से दूर हो, अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सके।
राजस्थानी संस्कृति का पुनरुत्थान
आज के वैश्वीकरण के दौर में क्षेत्रीय भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। ऐसे में, मनोज स्वामी ने राजस्थानी भाषा को जीवित रखने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है। रामलीला को राजस्थानी में प्रस्तुत करना एक चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसे बखूबी अंजाम दिया। संवादों को राजस्थानी की सरल और सहज शैली में ढालने के लिए स्वामी ने विभिन्न उप-बोलियों का उपयोग किया, जिससे हर दर्शक इसे आसानी से समझ सके।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
रामलीला केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह पहल न केवल भाषा के संरक्षण का काम करती है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोडऩे का अवसर भी प्रदान करती है। जब राजस्थानी में रामलीला मंचित की जाती है, तो यह न केवल संस्कृति को जीवित रखती है, बल्कि दर्शकों को अपनी पहचान भी देती है।
शहरी और ग्रामीण दर्शकों के बीच का सेतु:राजस्थानी रामलीला ने शहरी और ग्रामीण जीवनशैली के बीच की दूरी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शहरी क्षेत्रों के लोग आधुनिकता के बीच अपनी सांस्कृतिक जड़ों को फिर से खोजने का अवसर पाते हैं, जबकि ग्रामीण दर्शक इसे अपने लोक जीवन का जीवंत रूप मानते हैं। कुल मिलाकर केन्द्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत, लेखक, साहित्यकार मनोज स्वामी द्वारा प्रस्तुत राजस्थानी रामलीला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयास है, जो न केवल राजस्थानी भाषा और संस्कृति के संरक्षण का कार्य करती है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़िय़ों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी। यह नाट्य प्रस्तुति दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ती है और सभी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ती है।