विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से देश का पहला घोड़े का का बच्चा “राज-शीतल” आया अस्तित्व में : 20 किलोग्राम वजन का राज शीतल पूर्णतः स्वस्थ

Sunday, Sep 22, 2024-04:26 PM (IST)

 

बीकानेर, 22 सितंबर 2024 : विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण प्रत्यर्पण तकनीक से देश का पहला घोड़े का बच्चा 'राजशीतल' राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र बीकानेर परिसर में पैदा हुआ है । बता दें कि जांस्कारी नस्ल का यह बछड़ा स्वस्थ है एवं उसका जन्म का वजन 20 किलोग्राम है । इस बछड़े के उत्पादन के लिए, घोड़ी को जमे हुए वीर्य (फ्रोजन सीमन) से गर्भित किया गया और भ्रूण को 7.5वें दिन फ्लश कर अनुकूलित क्रायोडिवाइस का उपयोग करके विट्रिफाइ किया गया और तरल नाइट्रोजन में जमाया गया (फ्रिज किया गया) । पूरे दो महीने के बाद भ्रूण को पिघलाया गया और गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए सिंक्रनाइज़्ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया। यह उपलब्धि केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टी राव तालुड़ी एवं टीम, जिसमें डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आर के देदड़, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. एम कुट्टी, डॉ. एस सी मेहता, डॉ. टी के भट्टाचार्य एवं श्री पासवान सम्मिलित थे, के अनुसंधान से प्राप्त हुई ।

 

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दरअसल, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के बीकानेर परिसर के वैज्ञानिकों ने विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से देश का पहला घोड़े का बच्चा पैदा किया । यह जानकारी देते हुए केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एस सी मेहता ने बताया कि इस बछड़े का नाम “राज-शीतल” रखा गया। अभी बछड़ा स्वस्थ है एवं उसका जन्म का वजन 20 किलोग्राम है । इस बछड़े के उत्पादन के लिए, घोड़ी को जमे हुए वीर्य (फ्रोजन सीमन) से गर्भित किया गया और भ्रूण को 7.5वें दिन फ्लश कर अनुकूलित क्रायोडिवाइस का उपयोग करके विट्रिफाइ किया गया और तरल नाइट्रोजन में जमाया गया (फ्रिज किया गया) । पूरे 2 महीने के बाद भ्रूण को पिघलाया गया और गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए सिंक्रनाइज़्ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया। यह उपलब्धि केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टी राव तालुड़ी एवं टीम, जिसमें डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आर के देदड़, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. एम कुट्टी, डॉ. एस सी मेहता, डॉ. टी के भट्टाचार्य एवं श्री पासवान सम्मिलित थे, के अनुसंधान से प्राप्त हुई । 

 

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इस टीम ने आज तक मारवाड़ी घोड़े के 20 भ्रूण और जांस्कारी घोड़े के 3 भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रिफाई किया है। ज्ञात रहे कि भारत में घोड़ों की आबादी तेजी से घट रही है। 19वीं और 20वीं पशुधन गणना (2012-2019) के आंकड़ों से पता चला है, कि इस अवधि के दौरान देश में घोड़ों की संख्या में 52.71% की कमी आई है। इसलिए स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता है एवं इसी प्रयास में, यह केंद्र देश के बहुमूल्य स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहा है। वीर्य क्रायोप्रिजर्वेशन (फ्रोजन सिमन), कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण प्रत्यर्पण और भ्रूण क्रायोप्रिजर्वेशन जैसी प्रजनन तकनीकों का प्रयोग विभिन्न पशु प्रजातियों के संरक्षण में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के इस केंद्र ने घोड़ों में इन सभी तकनीकों को परिपूर्ण और मानकीकृत किया है। संस्थान ने हाल ही में मारवाड़ी और ज़ांस्कारी घोड़ों में फ्रेश एवं फ्रोजन वीर्य का उपयोग करके भ्रूण प्रत्यर्पण से सफलतापूर्वक बच्चे पैदा किए हैं। इसी क्रम में आज फ्रोजन भ्रूण के प्रत्यर्पण से स्वस्थ फिली पैदा करने में सफलता प्राप्त की है । 

 

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वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए आईसीएआर-एनआरसीई के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने कहा कि यह तकनीक समय की मांग है, क्योंकि यह तकनीक देश में घोड़ों की घटती आबादी की समस्या से निपटने में मदद करेगी और भ्रूण के क्रायोप्रिजर्वेशन की इस तकनीक से भ्रूण को उपयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया । निर्यात और आयात किया जा सकता है और जब भी संभव हो प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने विस्तार से बताया कि घोड़ों के लिए यह देश में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है। देश में श्रेष्ठ अश्वों के संरक्षण और संवर्धन के लिए इस तरह की उन्नत और उपयोगी तकनीकों के विकास पर जोर दिया जा रहा है। इस तकनीक के प्रयोग से अच्छे घोड़ों के बच्चे 10 -20 अथवा कई वर्षों बाद भी जरूरत के अनुसार पैदा किए जा सकेंगे ।
 


Content Editor

Chandra Prakash

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