जीआई टैग : एक दिवसीय कार्यक्रम में छह जिलों के 100 से अधिक हस्तशिल्पियों और कारीगरों ने भाग लिया
3/5/2021 10:16:08 PM
जयपुर, पांच मार्च (भाषा) राजस्थान के उद्योग विभाग और केंद्र सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ़ पेटेंट, डिज़ाइन एंड ट्रेडमार्क्स द्वारा शुक्रवार को राजस्थान के उदयपुर जिले में आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम में छह जिलों के 100 से अधिक हस्त शिल्पियों और कारीगर शामिल हुए।
इसमें भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद और उदयपुर के सैंकड़ों हस्त शिल्पियों और कारीगरों ने हिस्सा लिया।
यहाँ आये हस्त शिल्पियों और अन्य कारीगरों ने इस प्रक्रिया में उत्साह दिखाते हुए अपनी पारम्परिक कलाओं जैसे हथियारों पर होने वाली कोफ्तगारी, दाबू छपाई, पिछवाई चित्रकला और अन्य कलाओं का उपदर्शन करवाने के लिए रूचि व्यक्त कर विशेषज्ञों से जानकारी मांगी।
कार्यक्रम में देश भर से आये विशेषज्ञों ने कारीगरों को ग्लोबल इंडीकेटर्स के चिन्हीकरण, आवेदन और अन्य प्रक्रियाओं पर जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया के अगर कोई जीआई प्राप्त संसथान किसी योग्य कारीगर का पंजीकरण करने से मना करे तो वह कैसे अपने अधिकार प्राप्त कर सकता है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल, पेटेंट, डिज़ाइन एंड ट्रेडमार्क्स राजेंद्र रतनु ने कहा के राजस्थान का हर जिला इन पारम्परिक कलाओं और विरासत से भरपूर है और इन्हें समुचित पहचान मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसके लिए राजस्थान और केंद्र सरकार इन व्यवसायों से जुड़े लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास कर रही हैं।
ग्लोबल इंडीकेटर्स की प्रक्रिया किसी भी क्षेत्र की पारम्परिक कला या प्राकृतिक उत्पाद को खास पहचान दिलाता है। इसके पश्चात सिर्फ उक्त क्षेत्र और प्रक्रिया से उत्पन्न उत्पाद ही उस उपदर्शन का उपयोग कर सकते हैं।
इस उपदर्शन से खरीदार यह सुनिश्चित कर सकता है के उसके द्वारा सही उत्पाद ख़रीदा जा रहा है और इसका लाभ उस कला और व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को भी मिलता है। इसके आभाव में कई नकली या घटिया गुणवत्ता वाले उत्पाद बाजार हथिया कर खरीदार और कारीगरों से धोखा कर सकते हैं।
राजस्थान से अब तक 15 उत्पादों को जीआई टैग मिला हुआ है जिनमें बीकानेर की भुजिया, कोटा का कोटा डोरिया, जयपुर की ब्लू पॉटरी और मकराना का मार्बल शामिल हैं।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
इसमें भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद और उदयपुर के सैंकड़ों हस्त शिल्पियों और कारीगरों ने हिस्सा लिया।
यहाँ आये हस्त शिल्पियों और अन्य कारीगरों ने इस प्रक्रिया में उत्साह दिखाते हुए अपनी पारम्परिक कलाओं जैसे हथियारों पर होने वाली कोफ्तगारी, दाबू छपाई, पिछवाई चित्रकला और अन्य कलाओं का उपदर्शन करवाने के लिए रूचि व्यक्त कर विशेषज्ञों से जानकारी मांगी।
कार्यक्रम में देश भर से आये विशेषज्ञों ने कारीगरों को ग्लोबल इंडीकेटर्स के चिन्हीकरण, आवेदन और अन्य प्रक्रियाओं पर जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया के अगर कोई जीआई प्राप्त संसथान किसी योग्य कारीगर का पंजीकरण करने से मना करे तो वह कैसे अपने अधिकार प्राप्त कर सकता है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल, पेटेंट, डिज़ाइन एंड ट्रेडमार्क्स राजेंद्र रतनु ने कहा के राजस्थान का हर जिला इन पारम्परिक कलाओं और विरासत से भरपूर है और इन्हें समुचित पहचान मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसके लिए राजस्थान और केंद्र सरकार इन व्यवसायों से जुड़े लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास कर रही हैं।
ग्लोबल इंडीकेटर्स की प्रक्रिया किसी भी क्षेत्र की पारम्परिक कला या प्राकृतिक उत्पाद को खास पहचान दिलाता है। इसके पश्चात सिर्फ उक्त क्षेत्र और प्रक्रिया से उत्पन्न उत्पाद ही उस उपदर्शन का उपयोग कर सकते हैं।
इस उपदर्शन से खरीदार यह सुनिश्चित कर सकता है के उसके द्वारा सही उत्पाद ख़रीदा जा रहा है और इसका लाभ उस कला और व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को भी मिलता है। इसके आभाव में कई नकली या घटिया गुणवत्ता वाले उत्पाद बाजार हथिया कर खरीदार और कारीगरों से धोखा कर सकते हैं।
राजस्थान से अब तक 15 उत्पादों को जीआई टैग मिला हुआ है जिनमें बीकानेर की भुजिया, कोटा का कोटा डोरिया, जयपुर की ब्लू पॉटरी और मकराना का मार्बल शामिल हैं।
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