भटनेर के झरोखे से : सत्ता पक्ष में जोड़ी हिट तो विपक्ष में वजह की तलाश !
Sunday, Nov 24, 2024-04:23 PM (IST)
हनुमानगढ़, 24 नवम्बर 2024 (बालकृष्ण थरेजा ) । सूबे की 7 विधानसभा सीटों के उपचुनाव परिणाम ने सत्ता पक्ष को बड़ी मजबूती दी है। सत्ता वाली पार्टी में सरकार के मुखिया और संगठन के मुखिया की जोड़ी ने कमाल कर दिया है। दोनों नेताओं ने प्रदेश की 5 सीटें जीतकर अपनी रणनीतिकार की छवि को और मजबूत किया है। दोनों ही नेताओं ने उम्मीदवार घोषित करने, बागियों को मानने और चुनाव प्रबंधन की रणनीति बनाने में संजीदगी दिखाई। इसका परिणाम यह हुआ कि अन्य दलों की कई परंपरागत सीटें पहली बार सत्ता वाली पार्टी के हाथ लगी हैं । दूसरी तरफ विपक्ष वाले पार्टी ओवर कॉन्फिडेंस में 6 सीटें हार गई। एक सीट पर मामूली अंतर से जीत और तीन जगह तीसरे स्थान पर जाने के बाद पार्टी पूरी तरह निराशा में है। सत्ता पक्ष में जोड़ी हिट रही तो विपक्ष में अब हार की वजह तलाशी जा रही है। विपक्ष वाली पार्टी में हार का ठीकरा किस पर फोड़ा जाए इसका मंथन दिल्ली में होगा। विपक्ष वाली पार्टी के संगठन मुखिया की बॉडी लैंग्वेज पहले जैसी नहीं रही है। लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित रूप से 11 सीटें जीतकर विपक्ष वाली पार्टी का जोश उफान पर था। संगठन मुखिया छोटी- बड़ी हर सभा में गमछा डांस करने लगे। संगठन मुखिया के बड़बोलेपन पर भी इस चुनाव परिणाम के बाद विराम लगेगा। सत्ता वाली पार्टी में सरकार के मुखिया ने दिल्ली का भरोसा जीत लिया है। दिल्ली ने मुखिया की कुर्सी के लिए उनका चयन कर प्रदेश को चौंका दिया था लेकिन उन्होंने उपचुनाव में अपनी परफॉर्मेंस दिखाकर दिल्ली के फैसले पर मुहर लगा दी है। विपक्ष वाली पार्टी में अब दिल्ली दरबार में मंथन होगा। हो सकता है आने वाले दिनों में विपक्ष वाली पार्टी में नया पार्टी प्रधान नियुक्त हो जाए।
बाबा के मुंह पर परमानेंट अंगुली !
सत्ता वाली पार्टी में कैबिनेट मंत्री और सियासी बाबा के दिन खराब चल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवार को सीट नहीं जितवा पाने के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार हुआ या नहीं यह किसी को मालूम नहीं। इस्तीफा देने के बाद बाबा सरकार के खिलाफ हलचल करने लगे तो दिल्ली ने उपचुनाव में उनके सगे भाई को ही टिकट दे दिया। बाबा ने उपचुनाव में भाई को जीताने के लिए कड़ी मेहनत की। बाबा पहले जनरल कास्ट के निशाने पर थे लेकिन एससी- एसटी में क्रीमीलेयर की वकालत कर इस वर्ग के निशाने पर भी आ गये। आरक्षण में क्रिमीलेयर की वकालत करने के बाद भी अपने भाई को टिकट दिलाने से उनका दोहरा स्टैंडर्ड सामने आ गया। उप चुनाव में भाई के लिए चुनाव प्रचार में उन्होंने एड़ी- चोटी का जोर लगा दिया। घर-घर जाकर वोटों की भीख मांगी चुनाव प्रचार खत्म होते ही पड़ौस वाले जिले में एक सीट पर उपजे बावल के बीच ही बाबा ने वहां पहुंचकर सरकार की व्यवस्था पर अंगुली उठा दी। इस्तीफा देने के बाद कोई बयान देने से परहेज करने वाले बाबा ने अपनी जुबान पर अंगुली रखकर इशारा कर दिया। सरकार के कई फैसलों की आलोचना खुलेआम करने वाले बाबा की जुबान पर अब एक तरह से परमानेंट अंगुली रखी जा चुकी है। इस फैसले से सरकार ने भी थोड़ी राहत महसूस की है। अब बाबा बार-बार सरकार को घेरने वाले बयान देंगे तो उनकी उतनी पूछ नहीं होगी जितनी पहले होती रही है। उपचुनाव में हार के बाद उन्होंने भावुक पोस्ट की है। लोगों को खूब उलाहने दिए और अपनी पार्टी के पदाधिकारियों को विभीषण कह डाला । सगे भाई को नहीं जिता पाने का दर्द उनके बयान से साफ झलक रहा है। बाबा मंत्री पद छोड़ चुके हैं लेकिन पार्टी ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया। अब भाई चुनाव हार चुके हैं तो मंत्री पद पर भी जल्द ही फैसला होगा। सरकार के मुखिया अब जल्द ही बाबा के मंत्री पद को लेकर फैसला ले सकते हैं।
रानी साहिब प्रदेश की राजनीति का सूरज बनकर चमकेगी !
हमारे देश की राजनीति और सांपों के बीच कोई गहरा रिश्ता लगता है। आए दिन आस्तीन के सांप, राजनीतिक के सांप, सांस पीने वाले सांप, दूध पीने वाले सांपो के उदाहरण देकर अपने विरोधियों को धोखेबाज बताने का सिलसिला चलता रहता है। अब पुराने अनुभवों और कहावतों से प्रेरित होकर पूर्व सीएम ने भी कह दिया कि "सांप से कितना भी प्रेम कर लो, वह ज़हर ही उगलेगा।" सुनने में यह उपदेश गहरा लगता है, लेकिन राजनीतिक संदर्भ में यह ऐसा कटाक्ष है जिसे सुनकर उपस्थित लोगों ने खूब तालियां बजाई। अब सवाल यह उठता है कि भगवा पार्टी की पूर्व सीएम ने किसकी और इशारा किया है।ये सांप आखिर कौन हैं? वैसे राजनीति में कथित रूप से सांप तो बहुत हैं,कुछ ज़मीन पर रेंगते हैं, तो कुछ सत्ता की कुर्सियों पर। और प्रेम? वो तो राजनीतिक हलकों में इतना होता है कि दो दुश्मन भी चुनावी मंच पर 'गठबंधन' की माला पहन लेते हैं। लेकिन ज़हर उगलने की बात पर पूर्व सीएम ने जो सीधा तंज कसा, वो उनकी राजनीतिक सूझबूझ और विरोधियों पर वार दोनों को दिखाता है। उन्होंने कहा कि बादल कुछ देर सूरज को ढक सकते हैं, लेकिन उसकी चमक रोकने का सामर्थ्य उनमें नहीं। क्या यह संकेत है कि वह अब भी प्रदेश की राजनीति का सूरज बनने का सपना देख रही हैं? ऐसे आयोजनों में जहां धर्म, राजनीति और संस्कृति का अजीब सा घालमेल हो, वहां हर बयान को कुछ न कुछ संकेत मान ही लिया जाता है। खैर... राजनीति में सांप, सूरज और बादल का खेल यूं ही चलता रहा तो जनता को भी एक और कहावत याद रखनी चाहिए होगी सांप और सपेरों की कहानी कभी भी मनोरंजन से खाली नहीं होती। राजनीति के जंगल में कौन किसे डसेगा और कौन किस पर चमकेगा, यह देखना हमेशा दिलचस्प रहता है।
चुनाव टलने से किसको फायदा ?
प्रदेश की सरकार वन स्टेट वन इलेक्शन के फार्मूले पर आगे बढ़ रही है। इसी रणनीति के तहत हाल ही में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव टाले गए हैं। अब चर्चा है कि कई निकायों में परिसीमन होना है। परिसीमन, जनगणना जैसे कार्यों के चलते एक साल तक चुनाव होने की उम्मीद कम ही है। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार चाहती है कि नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव एक -दो चरण में एक साथ हों । इसे सत्ता वाली पार्टी की दिल्ली की मंशा से जोड़कर देखा जा रहा है। दिल्ली वन नेशन- वन इलेक्शन का नारा दे चुकी है। दिल्ली की पहल पर सूबे की सरकार यह प्रयास कर रही है। शहरों के विकास वाले महकमे के मंत्री ने इसके संकेत दे दिए हैं। चुनाव टलने से फायदा- नुकसान का आंकलन शुरू हो गया है। जिन निकायों में चेयरमैन को हटाकर प्रशासक लगाए जाएंगे वहां सत्ता सीधे सत्ताधारी विधायकों के हाथ में आ जाएगी। सत्ता वाले विधायकों की निकायों में खूब चलने लगेगी। शहरों का विकास अब विधायकों की डिजायर पर संभव हो पाएगा। सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ऐसा करने से आमजन का सीधा जुड़ाव सरकार से हो जाएगा और जब चुनाव होंगे तो इसका फायदा सरकार वाली पार्टी को मिल जाएगा। विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है और यदि शहरों में विकास अवरूद्ध होता है तो इसका फायदा विपक्ष भी ले सकता है।