111 साल से गुमनामी की चादर से ढका हुआ है मानगढ़ धाम, आज तक नहीं मिल पाया राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा
Monday, Nov 18, 2024-04:32 PM (IST)
17 नवंबर 1913 को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम पर हुआ नरसंहार देश की आज़ादी की लड़ाई का एक काला अध्याय बनकर रह गया है। यह वो दिन था, जब अंग्रेजी हुकूमत ने 1500 आदिवासियों की निर्मम हत्या कर दी थी, जिन्होंने गोविंद गुरु के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे।
गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासियों द्वारा चलाया गया यह भगत आंदोलन, आज़ादी की लड़ाई का एक अहम हिस्सा था, मगर अंग्रेजों ने इसे क्रूरता से कुचल दिया।
1500 से ज्यादा आदिवासियों ने दी थी प्राणों की आहुति
मानगढ़ की पहाड़ी पर हुए इस नरसंहार में अंग्रेजी सेना ने बर्बरता दिखाते हुए आदिवासियों पर गोलियां बरसाईं। यह घटना 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बड़ी थी, जिसमें 1500 से अधिक आदिवासी शहीद हुए थे। इस घटना को हर साल 17 नवंबर को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज भी इस दर्जे के लिए तरस रहा है मानगढ़
मानगढ़ धाम, जहां इस संघर्ष में प्राणों की आहुति देने वाले आदिवासियों की यादें जिंदा हैं, वो आज भी गुमनामी में खोया हुआ है। यह स्थान आदिवासियों की आस्था का मुख्य स्थल है और यहां शहीदों की याद में हर साल श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई राज्य प्रमुखों द्वारा यहां शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा चुकी है, मगर इसके बावजूद आज तक मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा नहीं मिल पाया है।
मानगढ़ धाम के प्रति आदिवासी समुदाय की यह मांग अब भी अधूरी है। लाखों आदिवासियों का यह सपना अब तक पूरा नहीं हो सका कि उन्हें उनके शहीदों के लिए उचित सम्मान और राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिले, जो इस स्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को स्वीकारता हो। भाजपा से जुड़े आदिवासी नेताओं ने आशा जताई है कि पीएम नरेंद्र मोदी के इसी कार्यकाल में मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिल जाएगा।