मां बगलामुखी,जहां विशेष पूजा करने से पूरी होती है हर मुराद, पांडवों ने की थी स्थापना, इंदिरा गांधी व राष्ट्रपति भी करवा चुके हैं विशेष पूजा
Monday, Sep 16, 2024-06:59 PM (IST)
झालावाड़, 16 सितंबर 2024 । भारत में मां बगलामुखी के कांगड़ा (हिमाचल) प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर पूरे भारत में जब सुर्खिया में आया सन 1977 में चुनावों में हार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी प्रदेश के इस प्राचीन मंदिर में अनुष्ठान करवाया । उसके बाद वह फिर दोबारा सत्ता में आई और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनी । राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में 15 मार्च 2015 को मंदिर में दर्शनों उपरांत हवन अनुष्ठान करवाया । इससे पहले भी इस मंदिर में कई नामी हस्तियां हाजिरी भर चुकी हैं । इनमें नोट फॉर वोट मामले में फंसे सांसद अमर सिंह, उनके साथ आई सांसद जया प्रदा, आतंकवादी विरोधी फ्रंट के अध्यक्ष मनिंदर सिंह बिट्टा, काग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर, उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सांसद राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर के नाम सुर्ख़ियों में रहे । वहीं फिल्म अभिनेता गोविंदा और गुरदास मान जैसी जाने-माने चेहरे यहां आए हैं । उसके बाद देशभर में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर हैं। जो प्रसिद्ध हो गए। जो क्रमशः दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं । हम बात करते हैं कि मां बगलामुखी नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) का ऐतिहासिक मंदिर की, जो मध्य प्रदेश के आगर जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी शक्तिपीठ है । यह शक्तिपीठ चारों ओर से श्मशान से घिरा हुआ है । यहा पंडित बाबुलाल शर्मा, मनोज शर्मा, कमलेश शर्मा आदि पंडितों ने पंजाब केसरी को बताया कि मान्यता है शत्रुओं को नियंत्रित करने, पराजित करने और उन पर विजय प्राप्त करने,घरेलू कलह, अदालती परेशानियों, जमीन जायदाद की समस्या और ग्रहों का शांत करने के लिए मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग पंडितों से शांति यज्ञ करवाते हैं ।
बगलामुखी देवी मंदिर में अघोरियों का जमघट, सारी रात तंत्र मंत्र का चलता खेल
पंडित बाबुलाल शर्मा ने बताया कि बगलामुखी सिद्धपीठ की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है । बताया जाता है कि मंदिर के ठीक नीचे सर्व मनोकामना सिद्ध ‘सहस्त्र दल महायंत्र’ स्थापित है । इससे यहां आने वाले हर व्यक्ति की मुरादें मां पूरी करती हैं । इस मंदिर की खास बात है कि नवरात्रि में यहां दर्जनों अघोरी तांत्रिक साधना के लिए जुटते हैं और सुबह होने से पहले तक तंत्र साधना समाप्त करते हैं । इसके लिए मंदिर के चारों और फैले हुए श्मशान में तांत्रिक तंत्र क्रियाओं को पूरा करते हैं ।
राजस्थान की झालावाड़ जिले की सीमा से 30 किलोमीटर, मध्यप्रदेश जिला मुख्यालय आगर से करीब 30 किलोमीटर दूर, उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से करीब 100 किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला में नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है । मां बगलामुखी मंदिर के लिए नजदीकी हवाई मार्ग राजस्थान का झालावाड़ एवं इंदौर है । इसके अतिरिक्त नलखेड़ा पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन उज्जैन, राजस्थान का भवानीमंडी, झालावाड़ का है,यहां से मंदिर की दूरी 100 किमी है । 130 किमी है आगर मालवा जिला इंदौर और उज्जैन के अलावा भोपाल, भवानीमंडी झालावाड़ कोटा और अन्य शहरों से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है ।
शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से आरंभ होगी और 11 अक्टूबर को महानवमी होगी । 12 अक्तूबर को नवमी को दुर्गा विसर्जन के साथ इसका समापन होगा। अबकी बार पालकी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा, माना जा रहा बेहद अशुभ होगा.ज्योतिष और धर्म के जानकार पंडित बाबुलाल शर्मा मनोज शर्मा बताते हैं कि मां दुर्गा की सवारी जब डोली या पालकी पर आती है, तो यह अच्छा संकेत नहीं है। मां दुर्गा का पालकी पर आना सभी के लिए चिंता बढ़ाने वाला माना जा रहा है। अर्थ व्यवस्था गिरने से लोगों का काम धंधा मंदा पड़ने की आशंका है। साथ ही देश-दुनिया में महामारी फैलने का डर है। लोगों को कोई बड़ी अप्राकृति घटना का सामना करना पड़ सकती है। सेहत में भारी गिरावट आ सकती है। दूसरे देशों से हिंसी की खबरें आ सकती हैं। पूरे 9 दिनों तक बगलामुखी मां के मंदिर में माता रानी की आराधना की जाएगी । पूजा करने से मां भगवती भक्तों की हर मुराद को पूरी करती हैं।
हम बात कर रहे हैं माता बगलामुखी मंदिर के बारे में । कई जाने माने नेता अभिनेता, मंत्रिगण तक इस वर्ष मंदिर में दर्शन कर चुके हैं। हर साल देश-विदेश से यहां करीब लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
मन मोह लेती है मां बगलामुखी की मूर्ति
पुजारी मनोहर लाल शर्मा ने पंजाब केसरी को बताया कि माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुन्दर नदी के किनारे स्थित है। मां बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरूप की है। सिद्धि दात्री मां बगलामुखी के एक ओर धन की देवी माता लक्ष्मी और दूसरी तरफ विद्या दायिनी महा सरस्वती विराजमान हैं। मां बगलामुखी की मूर्ति पीताम्बर के होने की वजह से यहां पीले रंग की पूजा सामग्री चढ़ाई जाती है। पीला कपड़ा, पीली चुनरी, पीले रंग की मिठाई और पीले फूल माता रानी को अर्पित किए जाते हैं। मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वस्तिक बनाया जाता है। प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजिरी लगाना प्रारंभ हो जाता है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है। भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तों को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास दृश्य निर्मित करती है। मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान किए हुए हैं।
मां बगलामुखी मंदिर से जुड़ी मान्यता
पुजारी मनोहर लाल शर्मा ने पंजाब केसरी को बताया कि मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। किवंदिती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित हुई है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। कहा जाता है, कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे । तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी। पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूप की आराधना कर विपात्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया। यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है, जहां कोई छोटा बड़ा नहीं सभी के दुखों का निवारण करती हैं। साथ ही मां शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देती हैं।
मां बगलामुखी मंदिर की खासियत
मनोज शर्मा एवं बाबूलाल शर्मा आदि ने पंजाब केसरी को बताया कि मां बगलामुखी के इस मंदिर का शिल्प नयनो को सुकून देने वाला है। मंदिर के मौजूदा स्वरुप का निर्माण करीब पंद्रह सौ साल पहले राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तीन फीट के आसपास है। दीवारों की बाहर की तरफ की गई कला कृति आकर्षक है और पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती है। मंदिर के ठीक सामने अस्सी फीट ऊंची दीपमाला दिव्य ज्योत को अलंकृत करती हुई विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है। मंदिर में सौलह खंभों का सभा मंडप बना हुआ है, जो करीब 250 साल पहले बनाया गया है। शिला लेख पर अंकित वर्णन से मालूम होता है कि इस सभा मंडप का निर्माण संवत 1815 में कारीगर तुलाराम ने कराया था। बगलामुखी के इस मंदिर के आस पास की संरचना देवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाणित करती है । मंदिर के उत्तर दिशा में भैरव महाराज का स्थान। पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा मंदिर के पीछे लखुन्दर नदी बहती है। दक्षिण भाग में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर है। कृष्ण मंदिर के पास ही शंकर, पार्वती और नंदी को स्थापित किया गया है। मंदिर परिसर में संत महात्माओं की सत्रह समाधिया और उनकी चरण पादुकाए हैं। महात्माओं द्वारा यहां ली गई जिंदा समाधिया सत्य का प्रमाण है, कि इस स्थान पर देवत्व का वास है। मूल मंदिर के दक्षिण में बाहर की तरफ एक शिव मंदिर बना हुआ है जो पहले मठ के रूप में था।
नेता से लेकर अभिनेता तक, मंदिर में टेक चुके हैं माथा
पंडित मनोज शर्मा एवं बाबूलाल शर्मा आदि ने पंजाब केसरी को बताया कि मां के इस मंदिर में पूरे वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है। मां बगलामुखी के इस मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी के परिवारजन सहित कई केंद्रीय मंत्री और बहुत से दिग्गज नेता आ चुके हैं। कई अभिनेता व अभिनेत्रीयां भी मां के दरबार में माथा टेक चुकी हैं। मां के मंदिर में हवन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, इसलिए चुनाव के समय माता के दरबार में नेतागण अपनी मुराद लेकर आते हैं। साथ ही चुनाव में जीत के लिए कई नेता इस मंदिर में हवन भी करते रहे हैं ।