भारत के फोरेंसिक जासूस खोज रहे 85 साल पुराने अमेरिकी सैनिकों के निशान, अमेरिकी डिफेंस एजेंसी ने भारत की NFSU से किया करार
Friday, Oct 03, 2025-12:10 PM (IST)

NFSU परिसर से विशाल सूर्यकांत की रिपोर्ट
भारत की नेशनल फोरेंसिक साइंसेज यूनिवर्सिटी (NFSU) अमेरिका के साथ मिलकर द्वितीय विश्व युद्ध में लापता अमेरिकी सैनिकों के अवशेषों की खोज कर रही है। भारत की फोरेंसिक साइंस इतनी उन्नत है कि युद्ध स्थल पर 80 साल बाद भी मिट्टी से जबड़े की हड्डी और दांतों के अवशेष निकालकर उनकी पहचान की जा रही है। तीसरी और चौथी पीढ़ी के वंशजों के डीएनए से इन अवशेषों का मिलान कर उन्हें परिजनों से जोड़ा जा रहा है।
NFSU के पास एशिया की सबसे एडवांस्ड DNA लैब है, जहाँ युद्ध या किसी भी घटनास्थल पर मिले हड्डियों और दांतों के नमूनों से DNA निकालकर पहचान की जाती है। अमेरिकी एजेंसी DPAA और NFSU के बीच हुए समझौते के तहत अरुणाचल, असम और नागालैंड में मारे गए अमेरिकी सैनिकों के अवशेषों की पहचान की जा रही है।
ऐसी है NFSU की पहचान की तकनीक
अक्सर युद्ध के अवशेष केवल दांत या जबड़े के हिस्सों तक सीमित होते हैं। NFSU की Forensic Odontology टीम दांतों से उम्र, पहचान और DNA मैच करती है। वर्ल्ड वॉर के पायलटों और सैनिकों की पहचान इसी तकनीक से हो रही है। इसमें विमान दुर्घटना स्थल की सही लोकेशन मिलते ही भारतीय फोरेंसिक विशेषज्ञ मिट्टी से अवशेष निकालकर यह साबित कर देते हैं कि सैनिक कौन था।
अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में भारत और अमेरिका की टीमें मिलकर यही काम कर रही हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में 4,00,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक मारे गए थे, जिनमें से लगभग 72,000 सैनिक अब भी लापता हैं।
अहमदाबाद विमान हादसे के पीड़ितों की पहचान भी यहीं हुई
NFSU की DNA लैब में अहमदाबाद विमान हादसे में मारे गए यात्रियों की पहचान की गई थी। उस समय लैब प्रभारी भार्गव पटेल ने बताया कि हादसे के तुरंत बाद उन्हें शवों की पहचान का कार्य सौंपा गया। केवल 24 घंटे में रिपोर्ट जारी कर दी गई और परिजनों को समय पर जानकारी उपलब्ध कराई गई। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह की दुर्घटनाओं में अवशेष अक्सर एक-दूसरे से मिल जाते हैं, क्योंकि शव गंभीर रूप से जल चुके होते हैं। हालांकि, लैब में DNA सैंपलिंग की प्रक्रिया में कोई समस्या नहीं आई।
सुभाष चद्र बोस की मिस्ट्री भी खुल सकती है
NFSU विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की फोरेंसिक तकनीक का पूरी दुनिया लोहा मान रही है। उनका कहना है कि यदि सुभाषचंद्र बोस के कथित विमान हादसे की सटीक लोकेशन की पुष्टि हो जाए, तो आज भी फोरेंसिक तकनीक से उस रहस्य का सच सामने लाया जा सकता है। यूनिवर्सिटी के पास इसके लिए पर्याप्त तकनीक और विशेषज्ञ मौजूद हैं।