भटनेर के झरोखे से : ‘राजस्थान की पधारो सा धमकी’!

Sunday, Sep 22, 2024-03:29 PM (IST)

नुमानगढ़ 22 सितम्बर 2024 । (बालकृष्ण थरेजा): राजस्थान वीरों की धरती, जहां जंग होती थी पर अब तलवार और ढाल की जगह माइक और बयानबाजी का दौर चल रहा है। अब देखिए, राजनीति के महारथी, हमारे प्रदेश कांग्रेस मुखिया ऐसे गरजे हैं कि बीजेपी सांसद बिट्टू साहब की धडक़नें तेज़ हो गई हैं! आओ राजस्थान! उन्होंने दहाड़ मारी। जैसे कह रहे हों, यहां आकर देख लो, असली राजनीति का नमक क्या होता है। अरे भई, अब राजनीति भी अखाड़े की तरह हो गई है। रिंग में कुश्ती से पहले धमाकेदार एंट्री और फिर बयानबाजी से ललकार! बिट्टू साहब ने आलाकमान के लिए आतंकी शब्द का इस्तेमाल कर दिया। फिर क्या था राजस्थान की गर्म हवाओं की तरह यहां के नेता भी गर्म हो गए! नेताओं का आपसी संवाद हम बताएंगे ’ कौन आतंकी है’ तक पहुंच गया है। वैसे पक्ष-विपक्ष यदि इसी तरह बयानबाजी में उलझा रहा तो असली मुद्दों का क्या होगा? बेरोजग़ारी, महंगाई, पानी की किल्लत, सडक़ों की हालत। सवाल ये है कि इन समस्याओं को सुलझाया जाएगा या इसमें उलझे रहो की राजस्थान में असली आतंकी कौन! सच पूछिए तो, राजनीति अब सुलझाने के बजाए उलझाने का खेल हो गई है। आम जनता को यह सब देखकर ऐसा लगता है मानो वो कोई पौराणिक युद्ध देख रहे हों, जहां बयानबाजी के बाण चलाए जा रहे हैं और जनता दर्शक हैं, जो ताली बजा रही है।


मुखिया की नसीहत का कितना असर होगा ब्यूरोक्रेसी पर !
पिछले हफ्ते ब्यूरोक्रेसी से संवाद में सरकार के मुखिया ने खूब नसीहतें दीं । उन्होंने पिछली सरकार की आलोचना भी की। अफसरों को सेवा भाव से काम करने की नसीहत दी। अब देखना यह होगा की मुखिया की नसीहत का ब्यूरोक्रेसी पर कितना असर होगा? प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी का जो हाल है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। जनसुनवाई में अफसर पीड़ितों के कागज हाथ में लेने की जहमत तक नहीं उठाते और खानापूर्ति कर प्रेस नोट जारी कर देते हैं।हकीकत इसके उलट होती है। छोटे-छोटे कामों के लिए रोजाना दफ्तरों के चक्कर काटकर थक चुके पीड़ित नाउम्मीद होते जा रहे हैं। कई अफसर तो ऐसे हैं जो तबादलों के बाद भी इच्छित स्थान नहीं मिलने पर ज्वाइन नहीं करते। इन अफसरों पर प्रदेश की तरक्की का जिम्मा है। कुछ अफसरों की इस कार्यशैली से पूरी ब्यूरोक्रेसी को लेकर गलत धारणा बन जाती है। सरकार के मुखिया ने खरी-खरी सुनाई है और यह जाहिर किया है कि काम करने वालों को आगे बढ़ाएंगे। प्रदेश की जनता को उम्मीद तो बंधी है कि मुखिया इंटरेस्ट ले रहे हैं तो कुछ बदलेगा। खाकी वाले महकमे का हाल तो और भी बुरा है। प्रदेश के विकास के लिए ब्यूरोक्रेसी का चुस्त- दुरुस्त होना जरूरी है।


सभी धड़ों का विकल्प बनते जा रहे संगठन मुखिया !
प्रदेश में विपक्ष वाली पार्टी के संगठन मुखिया की सक्रियता अब पार्टी को एकजुट करने में काम आने लगी है। पार्टी के सभी धड़ों को संगठन मुखिया से सामंजस्य में कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है। यही वजह है कि दिल्ली को अब सभी धड़ों का विकल्प संगठन मुखिया में नजर आने लगा है। संगठन मुखिया की दिल्ली में अब सीधी पहुंच हो गई है। पहले जो एक्सेस सरकार के पूर्व मुखिया और युवा नेता को दिल्ली में हासिल था वह अब संगठन मुखिया को मिल चुका है। दिल्ली में उनकी दस्तक काफी है और संगठन महामंत्री उनके सीधे संपर्क में हैं। पार्टी के सबसे बड़े नेता के दफ्तर में उनकी पहचान बन चुकी है। दिल्ली अब उन पर भरोसा करने लगी है। पिछले कई सालों से पार्टी धड़ों में बंटी रही और एक दूसरे के कार्यक्रमों में आने से नेता परहेज करते रहे थे। इन दिनों सभी धड़े संगठन मुखिया के आह्वान पर होने वाले कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं। यही वजह है कि बड़े पैमाने पर पार्टी में एक साथ कार्यक्रम हो रहे हैं। हाल ही में पार्टी के सबसे बड़े नेता के खिलाफ एक केंद्रीय मंत्री की टिप्पणी के विरोधस्वरूप हुए प्रदर्शनों में लगभग सभी नेता शामिल हुए। सरकार के पूर्व मुखिया ने संगठन के मौजूदा मुखिया को आगे बढ़ाया था और अब उनकी कार्यशैली छाप छोड़ने लगी है। युवा नेता को भी संगठन मुखिया से कोई दिक्कत नहीं है। यही वजह है कि संगठन मुखिया को एक कार्यकाल का और एक्सटेंशन मिल सकता है और यह आने वाले विधानसभा चुनाव तक उनकी पूछ को बरक़रार रखेगा।


मंत्री के बयान से युवा नेता के समर्थकों के हौसले बढ़े !
पिछले हफ्ते जिले के दौरे पर आए सरकार के गृह राज्य मंत्री ने कानूनी व्यवस्था की समीक्षा की। इससे पहले पार्टी दफ्तर में हुए स्वागत समारोह में उन्होंने पार्टी वर्करों में ऊर्जा भरने की कोशिश की। जिला मुख्यालय पर पार्टी की हार और निर्दलीय विधायक के सरकार को समर्थन से पार्टी कार्यकर्ता दो धड़ों में बंटे हुए हैं। इन दिनों सरकार में विधायक की खूब चल रही है। यहां से पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ चुके युवा नेता पूर्व मंत्री के बेटे हैं। दोनों पिता -पुत्र सरकार में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच गृह राज्य मंत्री ने युवा नेता के कंधे पर हाथ रखकर यह बयान दिया कि यहां से पार्टी हार गई तो क्या हमारे प्रत्याशी ही विधायक हैं । इतना सुनते ही युवा नेता के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। इस बयान को युवा नेता के समर्थक सोशल मीडिया पर खूब शेयर कर रहे हैं। इस बयान ने युवा नेता के समर्थकों में उत्साह का संचार किया है। यहां तक कि बिना किसी ओहदे के मंत्री युवा नेता को सरकारी मीटिंग में साथ लेकर गए। मीटिंग में मंत्री और अधिकारियों के साथ बैठे हुए युवा नेता की फोटो शेयर की जा रही है। अब आम जनता में पैठ बनाने के लिए ऐसे नुस्खे तो आजमाने ही पड़ते हैं।


आसमान की बुलंदियों पर राजस्थान की बेटी !
कहते हैं न कि आसमान में उडऩे के सपने देखना बहुतों को आता है, लेकिन उन सपनों को सच में बदलना तो कोई-कोई ही कर पाता है। अब लीजिए, झुंझुनू की मोहना सिंह का किस्सा ही देख लीजिए। मोहना तेजस से दुश्मनों के होश उड़ा रही हैं। मोहना ने एक इतिहास रचा है—बिलकुल वैसे ही जैसे किसी फिल्म की सुपरहीरोइन होती है। लेकिन, ये कोई फिल्म की कहानी नहीं, हकीकत की जमीन पर खड़ी वो बेटी की कहानी है, जो भारत के आसमान को और चमकीला बना रही है। तेजस उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनकर उन्होंने ये साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती। मोहना जो झुंझुनू जैसे छोटे से जिले से आती है, पिलानी में पढ़ाई करती है, और फिर सीधे भारतीय वायुसेना का हिस्सा बन जाती है! वाह क्या बात है। मोहना सिर्फ एक नाम नहीं, वो हर उस लडक़ी के लिए उम्मीद की किरण है जो सपने देखती है लेकिन दुनिया की जंजीरों से घबराती है। ये कहानी बताती है कि चाहे दुनिया कुछ भी कहे, अगर आपमें जुनून है, तो आप भी मोहना बन सकते हैं। मोहना की सफलता यही कहती है सपने देखो, पूरे करो और फिर उड़ो। क्योंकि उड़ान की कोई सीमा नहीं होती, बस हिम्मत चाहिए!


राजनीति में खेल या खेल में राजनीति?
आखिरकार, क्रिकेट और राजनीति का मिलन सदियों से चला आ रहा है। जब नेताओं को जनता की समस्याओं से थोड़ा फुर्सत मिलती है, तो वे खेल संघों की राजनीति में 'रन' बनाने लगते हैं। यह ऐसा मेल है जिसमें हर कोई 'कप्तान' बनना चाहता है, भले ही खेल से उनका नाता केवल टीवी पर मैच देखने तक ही क्यों न हो। अब देखिए, राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में क्या गज़ब घुसपैठ हुई है! नेता और उनके होनहार बच्चे, जो शायद ही क्रिकेट की बॉल को बल्ले से ठोकने का शौक रखते हों, आज  क्रिकेट संघों की कुर्सियों पर विराजमान हो रहे हैं। जैसे कि खेल की पिच पर गेंदबाज को छक्का मारने के लिए ये नेता मैदान में उतर पड़े हों। भगवा पार्टी के एक नेताजी तो जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बन गए, और उनकी एंट्री को देखकर लगता है कि राजनीति की यह 'क्रिकेट पारी' अभी लम्बी चलेगी।

 

अब सवाल यह है कि राजनीति में खेल की इस 'नोट आउट' एंट्री से कौन जीत रहा है।खिलाड़ी, राजनीति, या दोनों ही? क्योंकि जहां खिलाड़ियों को पिच पर मेहनत करनी पड़ती है, वहीं नेताओ के बेटों को केवल 'बल्ला उठाना' होता है, बाकी सब काम तो राजनीति कर ही देती है। भले ही क्रिकेट के खेल में जीतने के लिए प्रतिभा जरूरी हो लेकिन यहां, साहब, कुर्सी के खेल में तो बस 'सियासी पारी' और 'पावर' की जरूरत है। खिलाड़ी बेचारे खेलें, दौड़ें, और नेताजी चुपके से 'विजय ट्रॉफी' घर ले जाएं।


और हां, इस खेल में 'नो बॉल' का कोई खतरा नहीं, क्योंकि सियासत की पिच पर सब कुछ 'फ्री हिट' ही है। बहरहाल..खेल को यदि खेल रहने दिया जाए और राजनीति को राजनीति तो ज्यादा बेहतर है। वरना न खेल बचेगा, न खिलाड़ी।


 


Content Editor

Chandra Prakash

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