भटनेर के झरोखे से...बाबा को फरलो,कानूनी असमानता या वोटों की शक्ति का खेल ?

Sunday, Aug 18, 2024-02:36 PM (IST)

हनुमानगढ़, 18 अगस्त 2024 (बालकृष्ण थरेजा) : भारत में धर्म और राजनीति का संगम सदियों पुराना है। यह संगम, जब तक समाज के विकास और जनकल्याण के लिए काम करता है, तब तक इसे सराहा जाता है। लेकिन, जब यह संगम अपने पथ से विचलित होकर व्यक्तिगत लाभ और सत्ता के दुरुपयोग का माध्यम बन जाता है, तब यह देश के कानूनी ढांचे के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर देता है।

देशभर में कई कथित धार्मिक गुरु बलात्कार, हत्या, यौन शोषण सहित कई  संगीन अपराधों के लिए जेल की सजा काट रहे है । लेकिन,हाल की घटनाओं में सबने देखा कि एक ऐसे ही दोषी बाबा को वोटों  के लालच में बार-बार पैरोल और फरलो जैसे कानूनी प्रावधानों का लाभ दिया रहा है। वह भी कथित तौर पर किसी ना किसी राजनीतिक अप्रोच के चलते। क्या यह स्थिति न्याय की मूल भावना के साथ एक भद्दा मजाक नहीं है?

कानून की मंशा यह होती है कि सजा, अपराध की गंभीरता के अनुपात में हो और समान रूप से लागू हो। लेकिन जब समाज यह देखता कि एक दोषी ढोंगी गुरु को हर चौथे महीने में पैरोल मिल रही है, जबकि आम कैदियों को इसका लाभ नहीं मिलता, तो यह स्पष्ट रूप से कानूनी असमानता का परिचायक बन जाता है। यह स्थिति हमारे न्यायिक तंत्र के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर करती है। कानून, जो सभी के लिए समान होना चाहिए, वह विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए एक खिलौने के रूप में बदलता जा रहा है। विशेष रूप से तब, जब पैरोल या फरलो के लिए "मानवता" और "अच्छे आचरण" की दुहाई दी जाती है । परंतु इन शब्दों का वास्तविक महत्व उन कैदियों के लिए शून्य हो जाता है, जो बिना किसी राजनीतिक वरदहस्त के जेल की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यहां विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि क्या देश का कानून वास्तव में कमजोर हैं, या उसे जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है? क्या ये कानूनी प्रावधान केवल किताबों में सजे रहेंगे, या उन्हें उचित और न्यायपूर्ण ढंग से लागू भी किया जाएगा ? कानून की समानता का सिद्धांत केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसे व्यवहार में भी उतारना आवश्यक है। जिस दिन हमारे न्यायिक तंत्र में सभी के लिए समान और निष्पक्ष कानून की बात लागू होगी, उसी दिन हम वास्तविक रूप से एक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ेंगे।

उच्च सदन के लिए पत्ते नहीं खुलने से नेता बेचैन!
संसद के उच्च सदन के लिए प्रदेश से एक सीट पर उपचुनाव होना है। प्रदेश में विपक्ष वाली पार्टी के एक बड़े नेता के लोकसभा में चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। अब इस सीट पर सत्ता वाली पार्टी से उम्मीदवार जीतना तय है। सत्ता वाली पार्टी ने अभी इस सीट के लिए उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। प्रदेश में इस उप चुनाव को लेकर विपक्ष वाली पार्टी से उम्मीदवार नहीं आएगा, ऐसा स्पष्ट होने लगा है। हालांकि निर्दलियों की भूमिका पर विपक्ष वाली पार्टी को उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला निर्भर करेगा । सत्ताधारी पार्टी ने उम्मीदवारों का ऐलान तो नहीं किया है, लेकिन दावेदारों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं । इस सीट पर करीब आधा दर्जन दावेदार हैं । सबसे बड़ा नाम पड़ौसी सूबे से लोकसभा चुनाव हारने के बाद जटसिख कम्युनिटी से केंद्र में मंत्री बनाए गए एक नेता का है। इस नेता को उच्च सदन में भेजने से नहरी क्षेत्र में पार्टी को फायदा मिल सकता है। वैसे भी पड़ौस के दो सूबों में इस कम्युनिटी का सीधा राजनीतिक दखल है। इनके अलावा पार्टी के पूर्व संगठन मुखिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष समेत कई अन्य नाम भी हैं । एक-दो दिन में उम्मीदवार का ऐलान हो जाएगा और यह किस नेता की किस्मत चमका सकता है यह देखने वाली बात होगी।

सारी रणनीति संगठन मुखिया के इर्द-गिर्द!
प्रदेश में विपक्ष वाली पार्टी में संगठन मुखिया खूब सक्रिय हैं। दिल्ली में अब उनका सीधा दखल है। यही कारण है कि पार्टी के राष्ट्रीय चीफ और अघोषित मुखिया परिवार तक उनका सीधा दखल हो गया है। लोकसभा चुनाव में उम्दा प्रदर्शन के बाद संगठन मुखिया का कद दिल्ली में काफी बढ़ा है। यही कारण है कि आने वाले दिनों में संगठन की सभी रणनीति संगठन मुखिया के हिसाब से ही बन रही है। पिछले हफ्ते ही संगठन मुखिया ने दिल्ली में दो दिन बिताए। उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात की। प्रदेश से दो अन्य बड़े नेता सरकार के पूर्व मुखिया और युवा नेता केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं ।सरकार के पूर्व मुखिया स्वास्थ्य कारणों से बेड रेस्ट पर हैं और किसी एक्टिविटी में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। हालांकि पूर्व मुखिया सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय हैं । इसी तरह युवा नेता दूसरे राज्य के प्रभारी महासचिव हैं । युवा नेता प्रदेश में नाम मात्र ही सक्रिय हैं । संगठन मुखिया प्रदेश की आधा दर्जन सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर प्लानिंग करने में जुटे हैं। उम्मीदवारों के चयन में इन उपचुनाव में संगठन मुखिया की सीधी चलने वाली है। संगठन मुखिया कुछ जिलों में पार्टी के अध्यक्ष भी बदलना चाहते हैं । इसलिए उन्होंने दिल्ली से अप्रूवल ले लिया है। आने वाले दिनों में संगठन में बदलाव संगठन मुखिया के हिसाब से होना है।

श्रेय लेने की होड़ में छूट रहे पसीने
जिले में पड़ौसी राज्यों से लगी एक विधानसभा सीट पर सरकार से होने वाले कामकाज में श्रेय लेने में सत्ता और विपक्ष वाली पार्टी के नेताओं में होड़ मची हुई है। यह सीट दो राज्यों की सीमावर्ती सीट है। हालत यह है कि किसी कर्मचारी-अधिकारी की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी नेता सोशल मीडिया पर क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं। यहां सत्ताधारी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव हार गया था और वर्तमान में विपक्ष से एक युवा विधायक हैं। इनके बीच निर्दलीय चुनाव लड़ चुकी और सत्ताधारी पार्टी में शामिल हो चुकीं एक महिला नेता भी शामिल है। महिला नेता सरकारी कामकाज और विकास कार्यों की घोषणा पर तुरंत सोशल मीडिया पर हाजिर हो जाती हैं । सताधारी पार्टी से चुनाव हारे नेता पूर्व विधायक हैं, इसलिए वह अपनी सरकार होने का दावा करते हुए श्रेय लेने की कोशिश करते हैं। इसी बीच युवा विधायक सरकार पर दबाव के बहाने काम करवाने का दावा करते हैं। तीनों नेताओं की इस दौड़ से आम नागरिक भी कंफ्यूज होने लगा है। सरकारी कामकाज के लिए नेताओं के यहां पहुंचने वालों में व्यक्तिगत काम वाले समझ नहीं पा रहे कि कहां जाने पर उनका काम निकल सकता है। बहरहाल विधानसभा सीट की यह राजनीति काफी दिलचस्प दिख रही है।


 


Content Editor

Chandra Prakash

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