Diwali Festival : धनतेरस (29 अक्टूबर) के साथ शुरू होगा दीपोत्सव, इस वर्ष पांच नहीं छह दिनों का होगा दीपोत्सव
Tuesday, Oct 29, 2024-09:01 AM (IST)
जयपुर/जोधपुर, 29 अक्टूबर 2024 । पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा। हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि पर भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या लौटे थे। जिसकी खुशी में सारे अयोध्यावासी इस दिन पूरे नगर को अपने राजा प्रभु राम के स्वागत में दीप जलाकर उत्सव मनाया था। इसी कारण से तब से ये परंपरा चली आ रही है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा। इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत 29 अक्टूबर को धनतेरस से होगी। 30 अक्टूबर को हनुमान जयंती और छोटी दीपावली या रूप चौदस 31 अक्टूबर और दीपावली 1 नवंबर 2024, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 और भैयादूज 3 नवंबर 2024 के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा। पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान तक चलेगा। दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व भी होता है। इस दिन शाम और रात के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की जाती है। धनतेरस दीपावली का पहला दिन माना जाता है। इसके बाद नरक चतुर्दशी फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और आखिरी में भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान तक चलेगा। हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि पर भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या लौटे थे। जिसकी खुशी में सारे अयोध्यावासी इस दिन पूरे नगर को अपने राजा प्रभु राम के स्वागत में दीप जलाकर उत्सव मनाया था। इसी कारण से तब से ये परंपरा चली आ रही है। दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व भी होता है। इस दिन शाम और रात के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की जाती है। धनतेरस दीपावली का पहला दिन माना जाता है। इसके बाद नरक चतुर्दशी फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और आखिरी में भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है।
छह दिनों का दीपोत्सव
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा। इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत 29 अक्टूबर को धनतेरस से होगी। 30 अक्टूबर को हनुमान जयंती होगी। छोटी दीपावली या रूप चौदस 31 अक्टूबर को होगी। और दीपावली 1 नवंबर 2024, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 और भैयादूज 3 नवंबर 2024 के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा।
मंगलवार 29 अक्टूबर 2024, :- धनतेरस (धन-त्रयोदशी) धनतेरस के निमित्त सायंकाल यम-दीपदान,
बुधवार 30 अक्टूबर 2024 :- नरक व रूप चतुर्दशी के निमित्त सायं दीपदान , श्री हनुमान जयंती
गुरुवार 31 अक्टूबर 2024 :- नरक व रूप चतुर्दशी, प्रभात स्नान, अभ्यंग स्नान
शुक्रवार 01 नवम्बर 2024 :- दीपावली, श्रीमहालक्ष्मी पूजन, देव-पितृ अमावस्या
शनिवार 02 नवम्बर 2024 :- अन्नकूट, गोवर्धन पूजा
रविवार 03 नवम्बर 2024 :- भैया दोज (भाई-दूज)
29 अक्टूबर को धनतेरस पर दीपदान की होगी शुरुआत
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि धनतेरस जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं पांच दिवसीय दीपावली का पहला दिन होता है। धनतेरस के दिन से दीपावली का त्योहार प्रारंभ हो जाता है। मान्यता है इस तिथि पर आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हो हुए थे। इसी कारण से हर वर्ष धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति धनतेरस के दिन सोने-चांदी, बर्तन, जमीन-जायजाद की शुभ खरीदारी करता है उसमें तेरह गुना की बढ़ोत्तरी होती है। चिकित्सक अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि की पूजा करेंगे। इसी दिन से देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होगी और पांच दिनों तक जलाए जाएंगे। लोकाचार में इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं। लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान खरीदेंगे।
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ -29 अक्टूबर सुबह 10:32 बजे से
त्रयोदशी तिथि समाप्त – 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे तक
31 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी पर महिलाएं संवारेगी रूप
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है। इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन, सरसो का तेल मिलाकर उबटन तैयार कर शरीर पर लेप कर उससे स्नान कर अपना रूप निखारेंगी। नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ -30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक
1 नवंबर को दीपावली पर होगी महालक्ष्मी-गणेश पूजन
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि दीपावली पर घरों को रोशनी से सजाया जाता है। दीपावली की शाम को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, मां सरस्वती और धन के देवता कुबेर की पूजा-आराधना होती है। मान्यता है दीपावली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर ये देखती हैं किसका घर साफ है और किसके यहां पर विधिविधान से पूजा हो रही है। माता लक्ष्मी वहीं पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दीपावली पर लोग सुख-समृ्द्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। कार्तिक अमावस्या का दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं। प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी के साथ गणपति, सरस्वती, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।
कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्ति - 1 नवंबर की शाम 6:17 तक
2 नवंबर को गोवर्धन पूजा पर बंटेगा अन्नकूट
भविष्यवक्ता डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है। इस त्योहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है। इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है। दीपावली के अगले दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था। शहर में स्थान-स्थान जगह-जगह नवधान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित जाएगा।
3 नवंबर को भाईदूज पर भाई करेंगे बहनों के घर भोजन
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है। भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं। इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है। भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। यही वजह है कि आज भी इस दिन समझदार लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते। कल्याण और समृद्धि के भाई को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए।