यदि बिशनसिंह चुनाव लड़ने से नहीं करते इंकार, तो शायद राजस्थान को कभी नहीं मिलते भैरोंसिंह जैसे कद्दावर नेता
Monday, Oct 23, 2023-03:47 PM (IST)

प्रदेश में मौसम सर्द होने के साथ ही चुनावी गरमाहट बढ़ने लगी है। प्रदेश में जब भी बात सियासत की होती है तो राजस्थान की राजनीति के पुरोधा बाबोसा यानि देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत का जिक्र होना लाजिमी है। सूबे के चुनावी दंगल के बीच आज शेखावत का जन्मशताब्दी समारोह मनाया जा रहा है। ऐसे में आज हम आज आपसे उनके लंबे राजनीतिक सफर का एक ऐसा किस्सा साझा करेंगे, जिसमें हम आपको बताएंगे कि उनके राजनीतिक सफर कि शुरूआत कैसे हुए थी।
राजस्थान कि राजनीति में बाबोसा के नाम से मशहुर पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का वैसे तो लंबा राजनीतिक सफर रहा हैं। जिसमें कई दिलचस्प किस्से हुए है। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा तब का हैं, जब उनकों पहली बार चुनावी दंगल में उतरने के लिए टिकट मिला था। राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति रहे भैरोंसिंह शेखावत के टिकट के बारे में कम ही लोग जानते हैं कि भैरोसिंह शेखावत को विधानसभा चुनाव का पहला टिकट संयोग से मिला था। शेखावत का राजनीति में पदार्पण जनसंघ के टिकट के साथ हुआ था यानि जनसंघ ने उन्हें पहला टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था। लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी है कि पहले जनसंघ उनके भाई बिशनसिंह को टिकट देना चाह रहा था। लेकिन बिशनसिंह ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इसी दौरान भैंरोसिंह शेखावत ने भी अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी। ऐसे में बिशनसिंह ने जनसंघ के नेताओं को उनकी जगह भैरोंसिंह शेखावत को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारने की बात कही। जिसके बाद बिशनसिंह की इस राय से तत्कालीन जनसंघ के नेता सुंदर सिंह भंडारी को अवगत करवाया गया। भंडारी बिशनसिंह की इस राय या कहें सुझाव से सहमत हो गए। इसके बाद भैंरोंसिंह को प्रदेश के पहले चुनाव के लिए दांतारामगढ़ से उम्मीदवार चुना गया। जिसके बाद शेखावत पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
भैंरोसिंह शेखावत को पहली बार टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारे जाने वाले किस्से का जिक्र भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आड़वाणी ने भी किया। आडवाणी ने राजस्थान में एक जनसभा में इस किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि वे दांतारामगढ़ से बिशन सिंह को चुनाव लड़वाना चाहते थे। मगर प्रस्ताव रखने पर वे भाई भैरोसिंह शेखावत को मेरे पास लाए, जिनसे बात करने पर वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने दांतारामगढ़ से भैरोंसिंह शेखावत की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
अपने भाई बिशनसिंह की सिफारिश के बाद दांतारामगढ़ सीट से जनसंघ का टिकट मिलने के बाद भी भैरोंसिंह शेखावत के लिए चुनाव लड़ना बड़ी चुनौती था। दरअसल भैंरोसिंह के पास चुनावी मैदान में उतरने के लिए पर्याप्त धन का अभाव था। शेखावत ने खुद सीकर के जनसंघ ऑफिस में अपनी यह परेशानी तत्कालीन जनसंघ के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने रखी भी थी। शेखावत की इस परेशानी से अवगत होने के बाद जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने उनकी आर्थिक मदद भी की थी। जिसके बाद दांतारामगढ सीट से चुनाव लड़कर शेखावत ने कांग्रेस उम्मीदवार विद्याधर कुल्हरी को 2833 मतों से शिकस्त दी।
इस तरह से अब तक के राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता भैरोंसिह शेखावत का राजनैतिक सफर शुरू हुआ, जो राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के उपराष्ट्रपति तक रह चुके हैं। आज उन्हीं भैंरोसिंह शेखावत का जन्मशताब्दी समारोह धूमधाम प्रदेशभर में मनाया जा रहा है।