अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन
Wednesday, Feb 12, 2025-06:17 PM (IST)
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अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन
अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां वे 3 फरवरी से भर्ती थे। आचार्य सत्येंद्र दास ने अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी। वे निर्मोही अखाड़े के वैरागी महंत अभिराम दास से प्रभावित होकर संन्यास के मार्ग पर चले थे। अभिराम दास वही संत थे, जिन्होंने विवादित ढांचे में रामलला के प्रकट होने का दावा किया था।
रामलला के प्रकट होने की ऐतिहासिक घटना
वरिष्ठ पत्रकार रामप्रकाश त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक 'रामभक्त मजिस्ट्रेट' में 22 दिसंबर 1949 की उस रात का विस्तृत वर्णन किया है जब रामलला के प्रकट होने का दावा किया गया था। ठंड भरी उस रात में विवादित ढांचे की सुरक्षा में तैनात संतरी ड्यूटी पर थे, तभी करीब तीन बजे पुजारी ने चिल्लाकर घोषणा की कि "रामलला प्रकट हो गए!" इस खबर से साधु-संतों का जमावड़ा लग गया और अखंड राम कीर्तन शुरू हो गया।
पुलिस चौकी पर तैनात मुस्लिम संतरी अब्दुल बरकत ने भी इस घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि "मैंने बाबरी ढांचे के भीतर अद्भुत रोशनी देखी और बेहोश हो गया।" इस घटना की खबर तेजी से फैल गई और भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचने लगे।
राम जन्मभूमि आंदोलन और सरकार की प्रतिक्रिया
1949 में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए महंत अभिराम दास और अन्य संतों ने अखंड कीर्तन शुरू किया, जो श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति तक जारी रहा। यह खबर देश-विदेश तक पहुंच गई, और पाकिस्तान रेडियो ने इसे भड़काऊ भाषा में प्रसारित करना शुरू कर दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा हो गया।
जब यह खबर भारत सरकार तक पहुंची, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को "पूर्व की स्थिति बहाल करने" का आदेश दिया। मुख्यमंत्री पंत ने फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नैयर को निर्देश दिया, लेकिन जिलाधिकारी और नगर मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने इस आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यदि प्रशासन रामलला की मूर्तियों को हटाने की कोशिश करेगा, तो अयोध्या में भयंकर रक्तपात हो सकता है।
मुख्यमंत्री पंत का अयोध्या दौरा और प्रशासन की टकराव
मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने खुद अयोध्या जाने का निर्णय लिया, लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें रोक दिया। सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने मुख्यमंत्री को स्पष्ट रूप से मना कर दिया और कहा कि यदि मूर्तियों को हटाने की कोशिश की गई तो स्थिति बेकाबू हो सकती है। आखिरकार, मुख्यमंत्री को फैजाबाद की सीमा से ही लौटना पड़ा।
सिटी मजिस्ट्रेट का ऐतिहासिक फैसला
सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह जानते थे कि सरकार इस मामले में कोई कठोर कदम उठा सकती है, इसलिए उन्होंने दो महत्वपूर्ण आदेश पारित किए:
- पूरे क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी, जिससे किसी भी पक्ष का भारी जमावड़ा न हो सके।
- रामलला की पूजा-अर्चना को निर्बाध रूप से जारी रखने का आदेश दिया।
इसके बाद, उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। बाद में, 29 दिसंबर 1949 को विवादित स्थल को धारा 145 के तहत कुर्क कर रिसीवर नियुक्त कर दिया गया।
सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह के यह आदेश भविष्य में हिंदू पक्ष के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक एक मजबूत आधार बने और श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में मील का पत्थर साबित हुए।