नेल्सन मंडेला नियमों का एक दशक : जेल सुधारों की दशा और दिशा में बदलाव
Monday, Dec 29, 2025-04:42 PM (IST)
जयपुर। को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जेलों में बंद व्यक्तियों के साथ व्यवहार के लिए ‘कैदियों के उपचार के लिए संयुक्त राष्ट्र के मानक न्यूनतम नियम’ (United Nations Standard Minimum Rules for the Treatment of Prisoners) को संशोधित कर उन्हें “नेल्सन मंडेला नियम” नाम दिया। यह नाम उस महापुरुष के सम्मान में रखा गया, जिन्होंने अपने जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताए और फिर भी मानवता, करुणा और समानता की लौ को बुझने नहीं दिया। आज इन नियमों के लागू होने के 10 वर्ष पूरे हो चुके हैं, और यह अवसर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारी जेलें केवल बंदी रखने के स्थान हैं या वास्तव में सुधारगृह बन पाई हैं।
इन नियमों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है – हर बंदी को मनुष्य के रूप में सम्मान। किसी भी बंदी को यातना, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार का शिकार नहीं बनाया जा सकता। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन हो, मानव गरिमा सर्वोपरि है। जेल प्रशासन की जिम्मेदारी केवल पहरा देना नहीं, बल्कि बंदी, स्टाफ और आगंतुक – सभी की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करना है।
नेल्सन मंडेला नियम यह भी स्वीकार करते हैं कि जेल में जाना अपने-आप में एक पीड़ा है, इसलिए कारावास की परिस्थितियों को और कष्टदायक बनाना अनुचित है। सजा का उद्देश्य बदला नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा और बंदी का सुधार होना चाहिए। इसी कारण शिक्षा, प्रशिक्षण, रोजगार, आध्यात्मिक विकास और खेल जैसी गतिविधियों को बंदियों के पुनर्वास का आधार बताया गया है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह नियम एक नई सोच प्रस्तुत करते हैं। जेल में बंद व्यक्ति को वही स्वास्थ्य सुविधाएं मिलनी चाहिए जो समाज में उपलब्ध हैं और वह भी निःशुल्क। यह सेवा राज्य की जिम्मेदारी है, न कि किसी दया या उपकार का विषय। HIV, टीबी, नशा-उपचार और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को मुख्यधारा में लाया गया है। प्रत्येक नए बंदी की मेडिकल जांच, आत्महत्या या तनाव के संकेतों की पहचान और आवश्यक उपचार अनिवार्य किया गया है। यह व्यवस्था बताती है कि जेल की दीवारों के भीतर भी जीवन की रक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी बाहर।
एकांत कारावास को लेकर नेल्सन मंडेला नियम ऐतिहासिक माने जाते हैं। 22 घंटे से अधिक समय तक मानवीय संपर्क से वंचित रखना “एकांतवास” और 15 दिन से अधिक रखना “लंबा एकांतवास” है, जिसे मानवाधिकार उल्लंघन माना गया है। यह केवल अंतिम उपाय के रूप में, सीमित समय के लिए और स्वतंत्र समीक्षा के अधीन ही किया जा सकता है।
इन नियमों में पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी विशेष बल दिया गया है। जेल में किसी भी बंदी की मृत्यु, गुमशुदगी या गंभीर चोट की सूचना तुरंत स्वतंत्र जांच एजेंसी को दी जानी चाहिए। यह व्यवस्था जेल तंत्र को केवल अनुशासनात्मक नहीं, बल्कि उत्तरदायी बनाती है। नेल्सन मंडेला नियम यह भी कहते हैं कि समाज का दायित्व बंदी की रिहाई के साथ समाप्त नहीं होता। उसे घर, काम, पहचान और सामाजिक स्वीकृति दिलाना सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है, ताकि वह दोबारा अपराध की दुनिया में न लौटे।
भारत सरकार द्वारा गत एक दशक में जेल सुधारों पर विशेष ध्यान दिया गया है । इन नियमों को मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2016 तथा मॉडल प्रिजन्स एंड करेक्शनल एक्ट 2023 में शामिल कर जेल सुधार की दशा और दिशा तय करने के निर्देश दिये हैं ताकि कारागृह अपने उद्देश्य में सफल हो सकें ।
राजस्थान कारागार विभाग ने भी अपने ध्येय वाक्य ‘कृण्वंतो विश्वम आर्यम’ को सार्थक करते हुए हाल के वर्षों में नए जेल नियम, ओपन एयर कैंप, कौशल विकास, जेल उत्पाद, ई-प्रिजन और वीडियो मुलाकात जैसी पहलों ने इस वैश्विक सोच को व्यवहार में उतारने की दिशा दिखाई है। नेल्सन मंडेला नियमों के 10 वर्ष हमें यह याद दिलाते हैं कि जेलें दीवारें नहीं, बल्कि परिवर्तन की पाठशालाएं बनें।
