एक भारत, एक दृष्टि: सरदार पटेल की एकता और प्रगति की विरासत को कायम रखना
Friday, Oct 31, 2025-03:54 PM (IST)
जयपुर। इस 31 अक्टूबर को, जब राष्ट्र राष्ट्रीय एकता दिवस और सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है, यह संदेश शाश्वत और जरूरी है: एकजुट भारत न केवल हमारी विरासत है, बल्कि हमारी सबसे स्थायी ताकत है। स्वतंत्रता के पहले दिन से लेकर आज की वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों तक, भारत की एकता उसकी प्रगति का आधार रही है। फिर भी, यह एकता न तो स्वतः प्राप्त होती है और न ही निर्विवाद। इसे सक्रिय रूप से बनाए रखना होगा, रचनात्मक रूप से नवीनीकृत करना होगा और दृढ़ता से इसकी रक्षा करनी होगी। इस कार्य में, सरदार पटेल का दृष्टिकोण एक मार्गदर्शक प्रकाश बना हुआ है।
एकता की विरासत
1947 में जब भारत औपनिवेशिक शासन से मुक्त हुआ, तो नए राष्ट्र के सामने बहुत बड़ी चुनौती थी। आकार, संस्कृति और प्रशासनिक परंपराओं में विविधता वाली 560 से ज़्यादा रियासतें ब्रिटिश भारत के साथ-साथ मौजूद थीं। सवाल सिर्फ़ यह नहीं था कि वे अपनी संप्रभुता छोड़ेंगे या नहीं, बल्कि यह था कि क्या भारत एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में उभरेगा या छोटी-छोटी इकाइयों में बँट जाएगा। सरदार पटेल ने इस निर्णय को एक निजी मिशन के रूप में लिया।
उनका दृष्टिकोण दृढ़ किन्तु समावेशी था। उनका मानना था कि राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए, लेकिन वे प्रत्येक घटक की गरिमा का भी सम्मान करते थे। विलय-पत्र का निर्माण, सतत वार्ता और जहाँ आवश्यक, निर्णायक प्रशासनिक कार्रवाई के परिणामस्वरूप, सभी रियासतों को भारत संघ में शामिल किया गया। इसी उपलब्धि ने उस भारत की नींव रखी जिसे हम आज जानते हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यह केवल भूगोल से संबंधित नहीं था। पटेल ने ऐसी संस्थाओं के निर्माण पर ज़ोर दिया जो केंद्र को राज्यों से और नागरिकों को सरकार से जोड़तीं। उन्होंने गणतंत्र के "इस्पात ढाँचे" कहे जाने वाले ढाँचे को आकार देने में मदद की: अखिल भारतीय सेवाएँ, पुलिस और प्रशासनिक तंत्र जो दैनिक शासन में राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हैं। यह ढाँचा आज भी भारत के लोकतंत्र की स्थिरता के लिए केंद्रीय है।
विविधता के माध्यम से एकता
पटेल की उपलब्धि संरचनात्मक थी। लेकिन एकता सिर्फ़ नक्शे पर रेखाएँ खींचने या संधियों पर हस्ताक्षर करने से नहीं आती। एकता बाज़ारों, त्योहारों, भाषाओं, कलाओं और लोगों की साँसों में बसती है।भारत एक मोज़ेक है: सैकड़ों भाषाएँ, हज़ारों समुदाय, अनगिनत परंपराएँ। फिर भी, साल दर साल, त्योहार दर त्योहार, ये विविध सूत्र एक राष्ट्र के ताने-बाने में पिरोते रहते हैं। यही राष्ट्र की शक्ति है। इस शक्ति को बनाए रखने के लिए, विविधता का उत्सव मनाना होगा। विशेष रूप से महिलाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं: वे परंपराओं का पोषण करती हैं, आस-पड़ोस के जीवन को व्यवस्थित करती हैं, स्थानीय संस्कृति को बनाए रखती हैं और एकता की गुमनाम संरक्षक के रूप में कार्य करती हैं।
संस्कृति और कला वह सामाजिक बंधन हैं जो विविधता को एकता में पिरोते हैं और पुलिस तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) जैसे सुरक्षा संस्थान, वह सुरक्षित वातावरण प्रदान करते हैं जिसमें यह बंधन बना रह सकता है। शांति के बिना, विविधता विभाजन में बदल सकती है; संस्थाओं के बिना, संस्कृति विखंडन का जोखिम उठाती है।
शांति और स्थिरता के संस्थागत स्तंभ
भारत में एकता के लिए सांस्कृतिक सद्भाव से कहीं अधिक की आवश्यकता है। इसके लिए ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता है जो मज़बूत, निष्पक्ष, जवाबदेह और जनता से गहराई से जुड़ी हों। पुलिस, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और नौकरशाही तंत्र केवल राज्य के उपकरण नहीं हैं, बल्कि वे बहुलवादी नागरिक जीवन के रक्षक हैं।
हाल के वर्षों में एकता दिवस पर, अधिकारी और नागरिक कंधे से कंधा मिलाकर मार्च करते हुए देखे जा सकते हैं, पुलिस और समुदाय एकता की शपथ लेते हुए। संस्थाएँ तब सबसे प्रभावी होती हैं जब वे सुलभ और सेवा-उन्मुख हों और पारदर्शी। नागरिकों का विश्वास तब बनता है जब राज्य उनके लिए काम करता है, कानून के समक्ष समानता की रक्षा करता है।
जब सुरक्षा और प्रशासनिक बल ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो एकता मज़बूत होती है। लोगों का मानना है कि सभी नागरिकों के साथ, चाहे वे किसी भी क्षेत्र, धर्म, जाति या पंथ के हों, समान व्यवहार किया जाता है। इसी विश्वास में "एक भारत" की अवधारणा सार्थक होती है।
प्रतीक से पदार्थ तक
भारत ने अपनी एकता को मजबूत करने वालों की याद में स्मारक बनवाए हैं। केवड़िया स्थित 182 मीटर ऊँची स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी, सरदार पटेल की विरासत के सबसे प्रत्यक्ष स्मारकों में से एक है। स्मारक शक्तिशाली प्रतीक होते हैं, लेकिन केवल वे ही एकता को बनाए नहीं रख सकते, उनके साथ नीति, प्रयास और लोगों में निवेश भी होना चाहिए।
2019 में सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता पुरस्कार की शुरुआत इस बात पर ज़ोर देती है कि विरासत को न केवल याद रखना चाहिए, बल्कि उसे जीना भी चाहिए। इसी तरह, एकता प्रतिज्ञाएँ, एकता के लिए दौड़ मैराथन और सामुदायिक परेड नागरिकों को याद दिलाते हैं कि एकता एक सतत अभ्यास है।
एकता के लिए आर्थिक समावेशन, सामाजिक न्याय और अवसर भी आवश्यक हैं। केवल राजनीतिक एकीकरण ही पर्याप्त नहीं है; समृद्धि और संसाधन हर कोने और हर नागरिक तक पहुँचना चाहिए, ताकि राष्ट्र की शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव हो सके।
कार्य में एकता के रूप में आर्थिक समावेशन
एक अखंड भारत किसी भी क्षेत्र या समुदाय को पीछे नहीं रहने दे सकता। कनेक्टिविटी (सड़कें, रेलवे, डिजिटल बुनियादी ढाँचा) हर गाँव तक पहुँचनी चाहिए। अवसर समान होने चाहिए। सरदार पटेल ने जो एकता बनाई थी वह राजनीतिक थी; आज, एकता के लिए आर्थिक और सामाजिक एकीकरण भी आवश्यक है।
जब दूरदराज के ज़िलों में नए राजमार्ग, स्कूल या अस्पताल बनते हैं, तो संदेश स्पष्ट होता है: भारत की एकता सार्थक होती है। जब युवा राष्ट्रीय कार्यक्रमों, शोध पहलों या रक्षा सेवाओं में भाग लेते हैं, तो वे एक साझा राष्ट्रीय पहचान में योगदान देते हैं। एकता केवल नागरिकों का एकजुट होना ही नहीं है, बल्कि यह आकांक्षाओं और अवसरों का साझा मंच भी है।
शिक्षा और नागरिक संस्कृति में एकता
शिक्षा को तकनीकी कौशल से कहीं अधिक प्रदान करना चाहिए। नागरिक निर्माण महत्वपूर्ण है। युवा भारतीयों को सरदार पटेल के बारे में बताने वाली पाठ्यपुस्तकों में उनकी चुनौतियों, विकल्पों और दृष्टिकोण को ईमानदारी से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। एकता का अर्थ एकरूपता नहीं है; यह साझा प्रतिबद्धता के अंतर्गत भिन्नताओं का सम्मान है। यह एक राष्ट्र से जुड़े रहते हुए अनेक संस्कृतियों को समझना है।
स्कूलों को विभिन्न समुदायों में बहस, संवैधानिक असहमति और संवाद को प्रोत्साहित करना चाहिए। एकता दिवस न केवल समारोहों का दिन होना चाहिए, बल्कि एक भारत का क्या अर्थ है और प्रत्येक नागरिक इसमें कैसे योगदान देता है, इस पर बातचीत का दिन भी होना चाहिए। यह एकता केवल राजनीतिक गठबंधन नहीं, बल्कि नागरिक परिपक्वता है।
बाहरी संदर्भ और आंतरिक लचीलापन
रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में, एक मज़बूत और एकजुट भारत सम्मान का पात्र है। राष्ट्रीय एकरूपता विदेश नीति और वैश्विक प्रभाव के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि घरेलू स्तर पर कमज़ोरियाँ हैं, तो विदेशों में विश्वसनीयता कमज़ोर होती है।
सरदार पटेल ने माना कि एकता एक घरेलू आवश्यकता और एक वैश्विक संकेत दोनों है। एक अखंड भारत अधिकार के साथ बोलता है। जब देश आंतरिक रूप से विभाजित होता है, तो उसकी स्थिति कमज़ोर होती है। एकता के सबक केवल राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गूंजते हैं।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक बार कहा था: "प्रत्येक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह राजपूत है, सिख है या जाट है। उसे याद रखना चाहिए कि वह एक भारतीय है"।
यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। एकता एक बार में ही प्राप्त नहीं हो जाती। यह एक दैनिक अभ्यास है। नक्शा एकीकृत हो सकता है, लेकिन नागरिकों के हृदय, संस्थाएँ और संस्कृति गतिशील रूप से एकता में रहने चाहिए। यदि अतीत की उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए, तो विखंडन की संभावना बढ़ जाती है। निरंतर प्रयास, विविधता की सराहना और साझा आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करती है कि पटेल का दृष्टिकोण भारत के भविष्य का मार्गदर्शन करता रहे।
राष्ट्रीय एकता दिवस पर, सरदार पटेल को श्रद्धांजलि केवल स्मरण करने में ही नहीं, बल्कि उनकी विरासत को जीने में भी निहित है: एक भारत, एक दृष्टि, एक संकल्प। देश की एकता मज़बूत बनी रहे, इसकी विविधता का सम्मान हो और इसका भविष्य उज्जवल हो क्योंकि नागरिक एकजुट होकर खड़े होने का चुनाव करते हैं।
— अबू बकर नकवी, राष्ट्रीय संयोजक मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
