क्या मंत्री पद का कामकाज संभालेंगे बाबा?
Sunday, Feb 16, 2025-01:36 PM (IST)
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हनुमानगढ़, 16 फरवरी 2025 (बालकृष्ण थरेजा) । क्या मंत्री पद का कामकाज संभालेंगे बाबा?
सूबे की सरकार में काबिना मंत्री बाबा लंबे समय से रूठे हुए हैं। खेती-बाड़ी वाले महकमे के मंत्री पद से इस्तीफा देकर बाबा लंबे समय से सरकार को घेर रहे थे। खासकर सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में गड़बड़झाले की शिकायत के बाद इस भर्ती को रद्द करने की मांग बाबा ने उठाई थी। अपनी ही सरकार में काम नहीं होने की पीड़ा उन्होंने सार्वजनिक रूप से जाहिर कर दी। यहां तक कि खुद के फोन टैप करने की बात भी एक कार्यक्रम में कह दी। बाबा के इस बयान से सरकार विधानसभा में घिर गई। इसके बाद पार्टी एक्शन मोड में आ गई। दिल्ली के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश प्रधान ने बाबा को नोटिस थमा दिया। नोटिस के बाद बाबा के सुर लचीले हो गए। उन्होंने कहा कि अक्सर गलतियां हो जाती हैं। सूबे की एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान बाबा के समुदाय से चुनाव लड़ रहे युवा नेता की वहां उपजे बवाल के बाद गिरफ्तारी से बाबा नाराज दिखे। युवा नेता के समर्थकों के प्रति हमदर्दी जताते आए बाबा सियासी नोटिस के बाद अब युवा नेता के समर्थकों से पीछा छुड़ाते नजर आ रहे हैं। बाबा के और लचीले होने के बाद अब लग रहा है कि वह मंत्री पद का कामकाज भी संभाल लेंगे। अगर बाबा मंत्री पद का कामकाज नहीं संभालते तो उनका अगला सियासी रुख क्या होगा यह देखने वाली बात होगी!
पूर्व मुखिया के लिए हो रही नई भूमिका की तलाश!
विपक्ष वाली पार्टी अपनी लगातार हार के बाद अब बदलाव के मोड में नजर आ रही है। पार्टी के सबसे बड़े नेता और पार्टी चीफ की मंत्रणा के बाद अब दिल्ली से संगठन में बदलाव हो रहे हैं। कई राज्यों के प्रभारी बदले गए हैं। प्रदेश के प्रभारी को बरकरार रखा गया है। यहां से सीमावर्ती जिले के एक नेता की दिल्ली में पूछ बरकरार है। उन्हें मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रभार दिया गया है। उनकी पार्टी के सबसे बड़े परिवार में पहुंच है जिसकी वजह से उन्हें जिम्मेदारी दी गई है। युवा नेता पहले से ही एक राज्य का महासचिव के तौर पर जिम्मा देख रहे हैं। कई दिनों से चर्चा चल रही थी कि प्रदेश की सरकार के पूर्व मुखिया को पार्टी संगठन में बड़ा ओहदा दे सकती है क्योंकि पूर्व मुखिया पार्टी में पहले संगठन महासचिव रह चुके हैं इसलिए उन्हें किसी राज्य का प्रभार देने से उनका कद छोटा हो सकता है। फिलहाल उनके लिए नई भूमिका तलाशी जा रही है। चर्चा है कि उनके लिए कोई नया पद बनाया जा सकता है। चुनाव प्रबंधन संयोजक या उपाध्यक्ष से लेकर संगठन महासचिव जैसे पदों पर उनको जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा है। मौजूदा संगठन महासचिव अपने गृह राज्य में भेजे जा सकते हैं। आने वाले दिनों में पार्टी में बदलाव की कड़ी में पूर्व मुखिया को कोई भूमिका दी जा सकती है।
सरकारी आस्था बनाम मदिरा मार्ग !
मध्य प्रदेश सरकार ने धर्मस्थलों के पास शराब की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला किया है। यह निर्णय सुनते ही कई लोगों की भौंहें तन गईं,कुछ खुशी से तो कुछ चिंता में। शराब व्यवसाय से जुड़े लोगो का कहना है कि भक्तिमय माहौल में व्यवसाय कैसे चलेगा ? वहीं, आम जनता में कुछ ने राहत की सांस ली और कहा, आखिरकार सरकार को हमारी आस्था की चिंता हुई। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि यह फैसला दिल्ली की प्रेरणा से लिया गया है। अब सवाल उठता है कि क्या राजस्थान भी इस राह पर चलेगा ? अगर चला तो सरकारी खजाने की सेहत बिगड़ सकती है, क्योंकि यहां राजस्व की गाड़ी शराब के पेट्रोल से ही दौड़ती है। अब ज़रा सोचिए अगर राजस्थान में भी यह फैसला लागू हो गया तो कुछ तो ठेकेदार मंदिरों से दूर अपने ठेके खिसकाने की जुगत में लगेंगे।भक्त मंदिर जाने से पहले नक्शा देखेंगे कि शराब दुकान कितनी दूर है।
सरकार राजस्व बनाम आस्था के बीच संतुलन बनाने में उलझी रहेगी। शराब की दुकानें बंद करना या कम करना अच्छी बात है मगर धर्मस्थलों के आसपास की राजनीति भी बंद होनी चाहिए ? क्योंकि भक्तों की शांति में केवल शराबी ही खलल नहीं डालते बल्कि चुनावी शंखनाद और मंचीय वादे भी परेशानी पैदा करते हैं, तो फिर क्यों न आस्था और राजस्व के इस महायुद्ध में सरकार कोई मध्यमार्ग निकाले जहां आस्था भी बनी रहे और राजस्व का प्रवाह भी।