सत्यपाल मलिक का निधन: कश्मीर से किसान आंदोलन तक सत्ता से टकराने वाले पूर्व राज्यपाल नहीं रहे
Tuesday, Aug 05, 2025-03:12 PM (IST)

जम्मू-कश्मीर, बिहार, गोवा और मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें किडनी समेत कई अन्य बीमारियों के चलते ICU में भर्ती किया गया था। उनके निजी स्टाफ ने उनके एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल से यह सूचना साझा करते हुए निधन की पुष्टि की। संयोग से आज ही के दिन, 5 अगस्त 2019 को, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया था — जिस राज्य के वे कभी राज्यपाल रह चुके थे।
राजनीतिक सफर और प्रमुख पद
सत्यपाल मलिक का सार्वजनिक जीवन दशकों तक फैला रहा। उत्तर प्रदेश के बागपत से आने वाले मलिक ने छात्र राजनीति से शुरुआत की थी।
1974 में वे चौधरी चरण सिंह की पार्टी 'भारतीय क्रांति दल' से विधायक बने।
1980-1989 के बीच राज्यसभा सांसद रहे।
1989 में वे अलीगढ़ से जनता दल के टिकट पर लोकसभा सांसद चुने गए।
बाद में उन्होंने कांग्रेस, लोकदल और अंत में भाजपा का भी दामन थामा।
राज्यपाल के रूप में कार्यकाल:
बिहार: 2017–2018
जम्मू-कश्मीर: 2018–2019
गोवा: 2019–2020
मेघालय: 2020–2022
विवादों में भी रहे मुखर
सत्यपाल मलिक उन विरले नेताओं में शामिल थे, जो पद पर रहते हुए भी सत्ता से सवाल करने में पीछे नहीं हटते थे।
1. पुलवामा हमला:
उन्होंने दावा किया था कि अगर जवानों को एयरलिफ्ट करने की उनकी बात मानी जाती, तो यह हमला रोका जा सकता था।
2. किसान आंदोलन:
मलिक ने खुले तौर पर केंद्र सरकार की आलोचना की और किसानों के पक्ष में आवाज बुलंद की। कहा था – "सरकार किसानों की नहीं सुनेगी तो नुकसान होगा।"
3. भ्रष्टाचार के आरोप:
राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कुछ मंत्रालयों में भ्रष्टाचार के आरोप भी सार्वजनिक तौर पर लगाए।
उनका विचार और दृष्टिकोण
मलिक ने एक इंटरव्यू में कहा था – "मैंने कभी झूठ बोलकर पद नहीं बचाया। सच बोलने की आदत है, इसलिए अकेला हूं।"
उनकी पहचान एक बेबाक और संवैधानिक मूल्यों के लिए खड़े होने वाले नेता के तौर पर रही। किसानों, लोकतंत्र और संविधान को लेकर उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक अलग पहचान दी।
अंतिम विदाई
सत्यपाल मलिक के निधन से राजनीतिक और सामाजिक हलकों में शोक की लहर है। उन्हें एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जो पद की मर्यादा में रहते हुए भी, सत्ता के सामने सच बोलने की हिम्मत रखता था।