अंता उपचुनाव का रिजल्ट देख सब चौंके! इन 5 वजहों से हारे BJP के मोरपाल सुमन
Friday, Nov 14, 2025-05:16 PM (IST)
जयपुर। राजस्थान की अंता विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया ने 15594 वोटों से शानदार जीत दर्ज की है। होम वोटिंग समेत 20 राउंड की मतगणना के बाद भाया को 69462 वोट मिले, जबकि भाजपा के मोरपाल सुमन 53868 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर सिमट गए। निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा को 53740 वोट मिले। 925 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। हालांकि, भाजपा के लिए यह हार बड़ा झटका है खासकर हाड़ौती क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों को देखते हुए। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर बीजेपी के मोरपाल सुमन किन कारणों से हारे।
कारण नंबर 1. वोट विभाजन से त्रिकोणीय मुकाबला
कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने मीणा समुदाय के वोटों को बुरी तरह बांट दिया। एग्जिट पोल में मीणा को 33% समर्थन मिलने का अनुमान था, जिसने भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक को चूर-चूर कर दिया। पहले यह सीट कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर की थी, लेकिन नरेश मीणा ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया। मीणा के वोटों ने भाजपा को सीधे नुकसान पहुंचाया।
कारण नंबर 2. पूर्व विधायक की अयोग्यता का दाग
कंवर लाल मीणा की 2005 के आपराधिक मामले में सजा और अयोग्यता ने भाजपा की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। मतदाताओं में गुस्सा था कि पार्टी ने ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया, जिसके कारण सीट खाली हुई। इससे स्थानीय विकास कार्य ठप हो गए। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाकर हमला बोला, आरोप लगाया कि भाजपा ने जनता की अनदेखी की। यह दाग भाजपा के प्रचार को कमजोर करता रहा और वोटरों में नकारात्मक भावना पैदा की।
कारण नंबर 3. सुमन की कमजोर स्थानीय अपील
भाजपा ने वसुंधरा राजे के करीबी मोरपाल सुमन को स्थानीय चेहरे के तौर पर मैदान में उतारा। सुमन ने खुद को किराना दुकानदार की सादगी से पेश किया और भाया व मीणा को 'बाहरी' कहा। लेकिन उनकी अपील मतदाताओं तक नहीं पहुंच पाई। वहीं, तीन बार विधायक रह चुके भाया के विकास कार्य- सड़कें, सिंचाई परियोजनायों ने उन्हें मजबूत बनाया। सुमन की स्थानीय जुड़ाव की कमी ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया।
कारण नंबर 4. कांग्रेस की आक्रामक प्रचार रणनीति
कांग्रेस ने इन चुनावों के अंतिम चरण में जोरदार प्रचार किया। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, टीकाराम जूली और अशोक चांदना जैसे नेताओं ने रैलियां कीं। उन्होंने भाया के खिलाफ भाजपा के 'राजनीतिक मामलों' को खारिज किया और जातिगत समीकरण जैसे गुर्जर और माली को संतुलित रखा। भाजपा का फोकस माइक्रो-मैनेजमेंट पर फिसल गया, जबकि हाड़ौती में वोटर सेंटिमेंट कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट हो गया। वसुंधरा राजे की जमीन पर मेहनत के बावजूद कांग्रेस की एकजुटता भारी पड़ी।
कारण नंबर 5. मतदाताओं में असंतोष और क्षेत्रीय मुद्दे
आपको बता दें कि 80% मतदान के बावजूद बेरोजगारी, पानी की कमी और किसान समस्याओं पर भजनलाल सरकार की विफलता ने असंतोष बढ़ाया। नरेश मीणा की 2024 देवली उपचुनाव में SDM पर थप्पड़ मारने की घटना और गिरफ्तारी ने उन्हें 'लड़ाकू' नेता की संज्ञा दी जिसने युवाओं को आकर्षित किया।
